All you need to know about 5G technology in hindi
टेक ज्ञान

5G के बारे में आपके सारे सवालों के जवाब - जानिये क्या होगा जब 5G आएगा

स्मार्टफोन मेकर कंपनी एप्पल ने अपने आईफोन 12 सीरीज को लॉन्च किया है जो कि भारतीय बाजार में भी मौजूद है। इनकी कीमत लगभग ₹70,000 से लेकर सवा लाख के बीच रखी गई है। आईफोन प्राइस शिरीष के चार मोबाइल फोन iPhone 12, iPhone iPhone 12 Pro और iPhone 12 Pro Max लॉन्च किए हैं। इन स्मार्टफोन की कीमत इतनी ज्यादा होने के बाद भी कंपनी ने फोन के साथ वॉल चार्जर (चार्जिंग एडॉप्टर) और ईयरफोंस नहीं दिए हैं। इसे लेकर कंपनी का यह कहना है कि उसने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया है जिससे कंपनी कार्बन उत्सर्जन में कमी के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक कचरे (e-waste) को भी नियंत्रित कर सकेगी।


एप्पल के इस दावे से हटकर तकनीक जानकार बताते हैं कि एप्पल ने लागत को नियंत्रित करके मुनाफा बढ़ाने के लिए यह फैसला लिया है। जानकारों के मुताबिक एप्पल पहली बार अपने किसी आईफोन सीरीज में 5G तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहा है जिससे यह नया फोन पुरानी फोनों से महंगा और बेहतर है। एक एक्सपर्ट के मुताबिक आईफोन में लगाए गए कंपोनेंट,‌ जो 5जी इंटरनेट कनेक्टिविटी को कनेक्ट करते हैं उनकी लागत ही फोन की एक तिहाई कीमत के बराबर है। इस प्रकार एप्पल के पास कीमतों में भारी बढ़त होने से बचाने के लिए एक्सरसीरीज को हटाना ही पहला विकल्प था। ऐसे में अब आने वाले समय में सभी कंपनियां 5G की ओर कदम रखेंगी और सभी एप्पल की राह पर चलकर फोन से एक्सरसीरीज को हटा देंगी, जिससे आने वाले समय में मोबाइल फोन के साथ एक्सेसरीज देने का चलन खत्म हो सकता है।


क्या है 5G तकनीक? - What is 5G Technology?


5G यानी कि फिफ्थ जनरेसन ब्रॉडबैंड सेल्यूलर नेटवर्क की वह तकनीक, जो भविष्य में मौजूदा समय की सबसे तेज सेल्यूलर इंटरनेट कनेक्टिविटी 4G के स्थान पर आएगी। 4G वास्तव में 4G एलटीई यानी फोर्थ जनरेशन लॉन्ग टर्म एवोल्यूशन है। इंटरनेट और कनेक्टिविटी ने पिछले कई दशकों में खुद में कई बदलाव किए हैं। यदि हम सेल्यूलर नेटवर्क की पिछली पीढ़ियों की बात करें तो 1G में वायरलेस तकनीक में टूटी फूटी हुई खरखराहट भरी आवाजों के जरिए बातचीत संभव हो पाया था। तो वहीं 2जी के जरिए पहली बार स्पष्ट आवाज के साथ एसएमएस बेसिक डाटा ट्रांसफर की सेवा मिली और मोबाइल इंटरनेट की शुरुआत हुई। 3जी कनेक्टिविटी की बात करें तो इसके साथ इंटरनेट पर तमाम तरह का एडवांस्ड कम्युनिकेशन शामिल हुआ जिसमें की वेबसाइट को एक्सेस करना, वीडियो देखना, म्यूजिक सुनना और मेल आदि करना संभव हुआ और 4G एलटीई ने इसे रफ्तार बनाया। कुछ इस प्रकार से इंटरनेट कनेक्टिविटी ने खुद में यह क्रांतिकारी परिवर्तन किए।


समय बढ़ते बढ़ते दुनिया और अधिक आधुनिकता की ओर कदम रख रही है। अब 5जी तकनीक के साथ एक नए तरह के वायरलेस कनेक्टिविटी का समय शुरू होने जा रहा है जिसकी स्पीड इतनी होगी कि घटनाओं की के घटने और उनकी सूचना पहुंचने के बीच लगने वाला समय यानी कि लेटेंसी ना के बराबर होगी। इस 5जी तकनीक से सिर्फ इंसान ही नहीं अपितु मशीनें और डिवाइसेज सभी एक दूसरे से कनेक्ट होंगी और आपस में रियल टाइम में संवाद कर सकेंगी। आने वाले समय में दुनिया तकनीकी और कनेक्टिविटी में इतनी एडवांस्ड होगी जिससे समय के साथ-साथ मेहनत भी कम करनी पड़ेगी और कम समय में अधिक वर्क पूरा किया जा सकेगा।


5G कैसे काम करता है? - How does 5G Network Work?


5G के वर्क करने से पहले हमें रेडियो स्पेक्ट्रम के विषय से रूबरू होना होगा। ज्ञात है कि वॉयरलैस कनेक्टिविटी के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम या यूं कहें कि रेडियो वेव्स (रेडियो तरंग) का इस्तेमाल किया जाता है। एक निश्चित समय अंतराल के बाद कोई रेडियो तरंग खुद को जितनी बार दोहराती है वह उसकी फ्रीक्वेंसी कहलाती है। इसे मापने की इकाई हट्ज कहलाती है जिसमें वेव फ्रिकवेंसी को नापा जाता है। कोई रेडियो तरंग खुद को एक बार दोहराने में जितना समय लेती है उसे उसकी वेवलेंथ कहा जाता है। यानी कि जब तरंगों की फ्रीक्वेंसी को बढ़ाया जाता है तो उनकी वेवलेंथ कम होने लगती है सामान्यतः फ्रीक्वेंसी अधिक होने (या वेवलेंथ कम होने) पर तरंगे तेजी से एक जगह से दूसरी जगह पर तो पहुंचती है परंतु ज्यादा दूर तक नहीं जा पाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वेवलेंथ कम होने की वजह से यह तरंगे विभिन्न सतहो को भेद नहीं पाती हैं। इसके विपरीत यानी की फ्रीक्वेंसी कम और वेवलेंथ अधिक होने पर वे कम गति के साथ अधिक दूरी तय कर सकती हैैं।


अब हम इसे उदाहरण के जरिए समझे तो 1 2 3जी सेवा में 4G की तुलना में लो फ्रीक्वेंसी बैंड पर इंटरनेट उपलब्ध होता है। इसलिए उसकी स्पीड कम लेकिन कवरेज ज्यादा होती है यही कारण है कि दूरस्थ क्षेत्रों में धीमी रफ्तार से या उसे इंटरनेट कनेक्टिविटी आ जाने से मिल जाती है वही 4G सेवा में अपेक्षाकृत हायर फ्रीक्वेंसी बैंड पर इंटरनेट उपलब्ध होता है जिससे फास्ट कनेक्टिविटी तो मिलती है लेकिन सुदूर इलाकों या बंद कमरों में कई बाल 4G सेवा नहीं मिल पाती है। इस प्रकार की समस्याओं को दूर करने के लिए 5G तकनीक समाधान का कार्य करेगी क्योंकि इसमें लोह, हायर और मिड रेंज फ्रिकवेंसी बैंड को एक साथ इस्तेमाल किया जाता है। 5G तकनीक में हाई फ्रिकवेंसी रेडियो वेव्स जहां कम कवरेज वाला तेज इंटरनेट उपलब्ध करवाएगी तो वहीं मिड रेंज और लोअर फ्रीक्वेंसी बैंड्स से दूर तक और लगातार कनेक्टिविटी बनाए रखने में सहायक होगी।


Sub-6 बैंड का नाम 5G तकनीक के साथ लिया जाता है। सब-6 बैंड में 450 मेगा हर्टज से 6 गीगा हर्टज के फ्रिकवेंसी स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल किया जाता है। 5G में इस्तेमाल किया जा रहा लोअर और मिड रेंज फ्रिकवेंसी स्पेक्ट्रम सब-6 का ही हिस्सा है। 5G का लोअर फ्रिकवेंसी स्पेक्ट्रम (600 से 700 मेगा हर्ट्ज) लगभग वही होता है जिसे 4G सेवाओं में प्रयोग में लाया जाता है। फाइल जीमेल ओवर बैंड सेल टॉवर्स को शामिल किए जाने में क्या फायदा मिलेगा कि इसका कवरेज एरिया 4जी के बराबर हो जाएगा यानी कि दूरस्थ समेत सीमा क्षेत्रों में भी इसी बैंड का इस्तेमाल होगा। मिड बैंड 5G में 2.5 से 3.7 गीगाहर्टज के स्पेक्ट्रम का प्रयोग किया जा सकता है जिस पर 100 से 400 एमबीपीएस की स्पीड से इंटरनेट इस्तेमाल किया जा सकेगा वहीं अगर हाई बैंड 5जी की बात करें तो इसमें 25  गीगाहर्टज से ऊपर के फ्रीक्वेंसी बैंड का इस्तेमाल किया जाता है।



5G पर कितना तेज इंटरनेट मिलेगा? - How Fast the Internet will be Available on 5G?


फिफ्थ जनरेशन वाला इंटरनेट अपने पीक पॉइंट से स्पीड देगा। कहा जा रहा है कि 5G तकनीक से गीगाबिट्स प्रति सेकंड (जीबीपीएस) के रफ्तार से डाटा को ट्रांसफर किया जा सकता है। 5G तकनीक पीक डाटा रेट्स यानी आदर्श परिस्थितियों में एक सेकंड में 200 गीगा बिट्स (1 बाइट बराबर 8 बिट्स) डाटा डाउनलोड और 10 गीगा बिट्स डाटा अपलोड करेगी परंतु व्यापारिक रूप से मिलने वाली स्पीड 100 मेगा बीट्स प्रति सेकंड यानी एमबीपीएस डाउनलोडिंग स्पीड और 50 एमबीपीएस अपलोडिंग स्पीड तक ही होगी फिर भी यदि इसकी स्पीड कितनी ज्यादा होगी इसका अंदाजा 4G एलटीई कनेक्शन के साथ इसकी तुलना करके लगाया जा सकता है। 4G में पीक डाटा रेट 300mbps और 150mbps होनी चाहिए वहीं व्यापारिक रूप से 4G एलटीइ के जरिए सिर्फ 40 एमबीपीएस डाउनलोडिंग और 25 एमबीपीएस अपलोडिंग स्पीड ही मिल पाती है। 

सूचना का एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने में लगने वाले समय को लेटेंसी कहा जाता है। यदि लेटेंसी की बात करें तो दो वस्तुओं के बीच कम्युनिकेशन में आदर्श परिस्थितियों में 1 मिली सेकंड (सेकंड का हजारवां हिस्सा) और व्यवहार के चार मिली सेकंड का समय लगने की बात कही जारी है, इस प्रकार की स्पीड आपके 5जी इंटरनेट पर देखने को मिलेगी। अब सवाल यह है कि इंटरनेट के इस तेज रफ्तार की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी ? यह जानने के लिए आप अपने आस-पास तेज रफ्तार से दौड़ने दौड़ती ऑटोमेटिक कारों या दुनिया के एक कोने में बैठे डॉक्टरों द्वारा दुनिया के दूसरे कोने में की जारी रिमोट सर्जरी के दृश्य की कल्पना करके अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में संवाद उसी रफ्तार से होना चाहिए जैसे हम आमने-सामने बैठकर करते हैं।


5G महंगा क्यों है?- Why is 5G Expensive? 


हमारे चारों ओर का क्षेत्र किसी भी सेल्यूलर नेटवर्क में एक षटकोण आकार के सेल्स में बंटा होता है इन सभी सेल्स के बीच में एक बीटीएस (बेस,  ट्रांसीवर स्टेशन) होता है जिसमें मूल रूप से एक एंटीना, ट्रांसमीटर और रिसीवर यूनिट होते हैं। यह बीटीएस सेल फोन के साथ रेडियो तरंग के माध्यम से कम्युनिकेट करता है। सेल फोन नेटवर्क को सेल्स में बांटने की जरूरत है इसलिए होती है क्योंकि जरा से पावर से चलने वाले मोबाइल फोन इतने पावरफुल सिग्नल भेज सकते हैैं। रेडियो स्पेक्ट्रम एक दुर्लभ और सीमित संसाधन है और मोबाइल कंपनियां अपनी हर सेल में बार-बार उन्हें मिली फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल कर सकती हैं। यदि सेल्स ना हो तो एक ही बीटीएस से सीमित रेडियो स्पेक्ट्रम के जरिए सभी सेल्सफोन के साथ संपर्क कर पाना मुश्किल होगा। अभी यह होता है कि जब हम लगातार बात करते हैं या इंटरनेट एक्सेस करते हैं तो हम एक सेल से दूसरे सेल में जाते हैं और हमारा कनेक्शन पहले सेल से कटकर दूसरे के बीटीएस के साथ कनेक्ट हो जाता है।


सामान्यतः 5G नेटवर्क में सेल्यूलर ब्रॉडबैंड उपलब्ध कराने के लिए तीन तरह के सेल्स (हाई, मीडियम और लो फ्रिकवेंसी) और उन में लगने वाले उपकरणों की जरूरत होती है जिसके लिए फ्रिकवेंसी स्पेक्ट्रम भी ज्यादा चाहिए। यदि हमें 5G की स्पीड में सबसे हाई स्पीड का इंटरनेट कनेक्शन चाहिए तो स्ट्रीट लाइट्स की तरह गली मोहल्लों में हमें मिली मीटर वेब्स के जरिए कम्युनिकेट करने वाले बेस स्टेशन लगाने पड़ेंगे। इस प्रकार नई टेक्नोलॉजी आधुनिक उपकरण को भारी संख्या में  लगाकर की ज्यादा खर्च की जरूरत पड़ने के कारण 5G टेक्नोलॉजी इंटरनेट प्रोवाइडर्स के लिए भारी-भरकम लागत वाली साबित होगी। इनकी लागत को कम करने के लिए 5G को सिर्फ भीड़भाड़ वाले इलाकों में ही उपलब्ध कराया जा सकता है जिससे कि खर्च को कम किया जा सके।


5जी की रफ्तार से चलने वाले मोबाइल और बाकी डिवाइड्स में भी बेहतरीन प्रोसेसर लगाए जाने की जरूरत है जिससेbउनकी भी लागत बढ़ जाती है। आपको बता दें कि अभी तक 5G तकनीक के इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छा प्रोसेसर क्वालकॉम स्नैपड्रेगन X-55 और इस स्नैपड्रैगन एक्स-16 मॉडर्न आर्ट के जरिए भी पीक डाटा रेट 7.5 जीबीपीएस के स्पीड हासिल किए जा सकते हैं जबकि सबसे हाई स्पीड 5G पर 20 जीबीपीएस तक पहुंचती है।


5G तकनीक और मिलीमीटर वेव-टावर क्या मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है? - Are 5G Technology and Millimeter Wave-Towers Harmful to Human Health?


माना जाता है कि टावरों से निकलने वाले रेडिएशन पर्यावरण और वन्य जीव जंतुओं के लिए खतरा साबित हो रहा है। पर्यावरण के साथ ही मानव के लिए भी यह हानिकारक हो सकती है क्योंकि वेव टावर लोगों के घरों के काफी पास लग चुके हैं। पिछले दिनों कई मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया था कि 5G सेलफोन से कैंसर पीड़ितों की संख्या में वृद्धि कर सकता है। इसके अलावा कुछ शोध पत्रों में यह भी कहा जा रहा है कि 5G नेटवर्क के लिए लगाई जा रही millimeter-wave टावर में होने वाला हाई फ्रिकवेंसी रेडिएशन कैंसर के साथ-साथ इनफर्टिलिटी डीएनए और तंत्रिका तंत्र से जुड़े असामान्यता का कारण बन सकती है। भले ही इन सभी आशंकाओं को वैज्ञानिकों ने सिरे से खारिज कर दिया है।


वैज्ञानिकों के मुताबिक यह बात सही है कि एक्स-रे और गामा किरणें भी हाई फ्रिकवेंसी तरंगे इंसान और अन्य जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक होती हैं लेकिन 5G के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है स्पेक्ट्रम इससे काफी नीचे है। वैज्ञानिकों ने 5G तरंगों को खतरा बनाने वाले शोधों पर टिप्पणी करते हुए बताया है कि यह वेव ब्रेन सेल पर असर डालती हैं लेकिन इस बात को नजरअंदाज किया कि यह मनुष्य की त्वचा को पार ही नहीं कर पाती हैं। प्रसिद्ध कैंसर रिसर्चर डेविड रॉबर्ट ग्राइम्स ने द गार्जियन के लिए लिखा है कि "मोबाइल फोन कोई आपदा नहीं है हमें यह समझना चाहिए कि हर प्रकार का रेडिएशन नुकसान नहीं पहुंचाता है। बीते कुछ सालों के बाद करें तो मोबाइल का इस्तेमाल कई गुना बढ़ चुका है अगर यह किसी भी तरह से कैंसर की वजह होता तो अब तक इसके मामलों में वृद्धि देखने को मिलती। डब्ल्यूएचओ ने भी मोबाइल फोन के इस्तेमाल को कई स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बताया परंतु सैद्धांतिक रूप से साबित होने के बावजूद अभी तक व्यवहारिक तौर पर मोबाइल फोन के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरा असर पढ़ने के कोई सबूत नहीं मिल पाए हैं।"


विशेषज्ञ इन अफवाहों को बेतुका तर्क देते हुए कहते हैं कि अभी तक 5G दुनिया में अधिकतर स्थान तक नहीं पहुंच पाई है लेकिन कोरोना वायरस दुनिया के उन जगह पर पहुंच चुका है जहां 4G की कनेक्टिविटी भी अभी तक ठीक से नहीं पहुंच पाई है। इसके साथ ही यह भी कहते हैं कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के जरिए कोई बायोलॉजिकल वायरस एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंच सकता है यह काफी अचंभित जैसा लगता है। कुछ मीडिया रिपोर्टों में इसे लोगों को गुमराह करने और उकसाने के लिए जानबूझकर फैलाई गई गलत जानकारी बताई गई है।



भारत में कब तक उपलब्ध होगा? - When 5G will be Available in India?


माना जा रहा है कि वर्ष 2021 की पहली तिमाही में देश के 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाएगी। इसके बाद विशेषज्ञ अंदाजा लगा रहे हैं कि नीलामी के बाद देशभर में फाइबर केबल का नेटवर्क तैयार करने और वेव टावर इंस्टॉल करने में लगभग 2 से 3 साल तक का समय लग सकता है। भारतीय एयरटेल के मैनेजिंग डायरेक्टर गोपाल विट्ठल ने एक इन्वेस्टर सम्मिट में कहा कि "भारत में 5G तकनीक के लिए इकोसिस्टम अभी तक तैयार नहीं हो पाया है। मुझे लगता है कि देश में 5G तकनीकी उपस्थिति का पता चलने में ही अभी कम से कम 2 साल तक का वक्त लग सकता है।" कुछ मीडिया रिपोर्ट से हाल ही में कहा गया था कि 2025 तक देश में लगभग 20 करोड लोगों तक 5G कनेक्टिविटी पहुंच जाएगी।

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