Slogans of revolutionaries
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भारत के वीर क्रांतिकारियों के नारे | Slogans of revolutionaries

भारत एक ऐसा देश है जिसने कई वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी सही है। इस गुलामी से आजाद होने के लिए कई क्रांतिकारी वीरों ने अपना बलिदान दिया है। स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के अंदर जोश भर देने वाले नारे कई अहम भूमिका अदा करते हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इन नारों की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन्हें सुनकर उस समय हर देशवासी के मन में अपनी मातृभूमि पर मर मिटने की ललक और जज्बा पैदा होता था जो अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में घी का काम करता था। यह नारे भारतीय क्रांतिकारियों के मन में आग की चिंगारी पैदा कर देते थे जो की स्वतंत्रता के बाद ही जाकर शांत हुई। आइए इस लेख के माध्यम से उन महान क्रांतिकारियों और देशभक्त नेताओं के द्वारा दिए गए नारों को याद करते हैं। Slogans of revolutionaries


"जय जवान जय किसान"  (लाल बहादुर शास्त्री)  


भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक लगभग 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे। इसके बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। उन्होंने 1965 में रामलीला मैदान दिल्ली में अपना तेजस्वी भाषण और यह ओजपूर्ण नारा दिया था। जब तक वह प्रधानमंत्री के पद पर थे तो 1965 में अचानक भारत पर पाकिस्तान ने हवाई हमला कर दिया। उस समय उन्होंने भारत देश को एक बहुत ही अच्छा नेता और नेतृत्व प्रदान किया। यहां पर भी उनके द्वारा 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया गया। उनकी सादगी देशभक्ति और ईमानदारी को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न जैसे देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया है।


"करो या मरो" (महात्मा गांधी)  


जब भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम सीमा पर था तो उस समय गांधी जी ने 8 अगस्त 1942 को एक सभा में 'करो या मरो' का नारा दिया था। यह सभा मुंबई में आयोजित की गई थी। इस नारे में करो या मरो का मतलब है कि या तो हम भारत को स्वतंत्र करा लें या इसमें ऐसा प्रयत्न करें और इस लड़ाई को इस प्रकार लड़ें कि अपनी जान दे दें।


"अंग्रेजों भारत छोड़ो" (महात्मा गांधी)  


मोहनदास करमचंद गांधी जी को पूरा भारत 'राष्ट्रपिता' के नाम से जानता है। वे एक कुशल वकील, राज नैतिक एवं आध्यात्मिक नेता रहे हैं। वह अहिंसा, भाईचारा, प्रेम जैसे 6 सिद्धांतों पर अपना जीवन जिया करते थे। अहिंसा के सिद्धांत पर रखी गई नींव ने भारत को आजादी दिला कर पूरी दुनिया में भारत का परचम लहराया। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था और मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई थी। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधीजी द्वारा यह नारा दिया गया था।


"जय हिंद" (सुभाष चंद्र बोस) 


सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को तथा मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई थी। इन्हें सभी भारतवासी 'नेताजी' के नाम से जानते हैं। नेता जी ने यह नारा 1947 में ही बनाया था और हर मीटिंग और अपने भाषण के अंत में वे इस नारे का प्रयोग करते थे। बाद में इस नारे को राष्ट्रीय रूप में स्वीकार कर लिया गया तथा बहुत से नेता आज अपने संबोधन का अंत जय हिंद के साथ करते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए जापान के सहयोग से नेताजी ने आजाद हिंद फौज का गठन किया था तथा तभी उन्होंने यह नारा दिया था। Slogans of revolutionaries


"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।" (राम प्रसाद बिस्मिल) 


 स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक राम प्रसाद बिस्मिल जिन्हें 30 साल की उम्र में ही अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। इन्होंने काकोरी कांड, बिस्मिल मैनपुरी षडयंत्र जैसी कई घटनाओं में अपना योगदान दिया। यह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य भी रहे थे। सरफरोशी की तमन्ना यह कविता सर्वप्रथम उर्दू भाषा में bismill azimabadi ने लिखी थी जो कि 1921 में लिखी गई थी। राम प्रसाद बिस्मिल ने इसे सर्वप्रथम नारे के रूप में प्रयोग किया था।


"वंदे मातरम" (बंकिम चंद्र चटर्जी) 


यह नारा आजकल सभी भारत वासियों के संबोधन के अंत में बोला जाने वाला लोकप्रिय नारा है। इसे बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा अपनी रचना 'आनंदमठ' में सर्वप्रथम प्रयोग किया गया था। यह 1882 में पहली बार प्रयोग किया गया था। बंकिम चंद्र चटर्जी प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार थे। राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम भी उनकी ही एक रचना है। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम में कूदने वाले क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत था।


"सत्यमेव जयते" (मदन मोहन मालवीय) 


मदन मोहन मालवीय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रणेता थे तथा उन्हें आदर्श पुरुष कहा जाता था। उन्होंने मुंडक उपनिषद से सत्यमेव जयते लिया और इसे प्रसिद्ध किया था। अब भारत के राष्ट्रीय चिन्ह और राष्ट्रीय वाक्य के रूप में सत्यमेव जयते को स्थान दिया गया है। मदन मोहन मालवीय भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की उपाधि दी गई थी। इनका जन्म 25 दिसंबर 1861 को हुआ था तथा मृत्यु 1976 में हुई।


"दुश्मनों की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे।" (चंद्रशेखर आजाद) 


चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी था। उन्हें 25 वर्ष की छोटी उम्र में ही फांसी की सजा दे दी गई और भारत मां के वीर सपूत को देश को अलविदा कहना पड़ा। परंतु उनका यह नारा आज भी नव युवकों के लिए प्रेरणा स्रोत है। जो उनके दिलों में एक जागृति भर देता है। उनके बलिदान के बाद ही भारत का स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और अधिक तेज हो गया और हजारों की संख्या में युवक इस आग में कूद पड़े।च॔द्रशेखर आजाद के बलिदान के 18 साल बाद देश को आजादी नसीब हुई। आजाद को सभी पंडित जी कहकर संबोधित करते थे।


"इंकलाब जिंदाबाद" (भगत सिंह) 


भगत सिंह का जन्म 19 अक्टूबर 1960 को हुआ था तथा उनकी मृत्यु 23 मार्च 1931 को हो गई थी। इंकलाब जिंदाबाद का नारा मुस्लिम लीडर हसरत मोहानी द्वारा रचित था परंतु इसे लोकप्रिय बनाने में भगत सिंह का सबसे बड़ा हाथ था। उन्होंने यही नारा लगाते हुए सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में बम फेंका था।


"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।"(बाल गंगाधर तिलक) 


यह नारा स्वतंत्रता संग्राम के प्रचलित नारों में से सबसे प्रसिद्ध नारा था और इसके प्रयोग करते ही करोड़ों भारतीय स्वतंत्रता को लेकर प्रेरित हो जाते थे। बाल गंगाधर तिलक द्वारा प्रचलित किया गया यह नारा 1898 में बनाया गया था।


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"मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी" (रानी लक्ष्मीबाई) 


रानी लक्ष्मीबाई 19 नवंबर 1828 में जन्मीं थीं और वह स्वतंत्रता संग्राम की पहली वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी साम्राज्य के साथ युद्ध लड़ा और 18 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हो गई। जब सर huge Rose ने झांसी पर कब्जा करने की कोशिश की थी। तब इस महान रानी ने हथियार डालने से इंकार कर दिया और इस नारे का प्रयोग करते हुए कहा कि 'मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी'।


"साइमन कमीशन वापस जाओ" (लाला लाजपत राय) 


लाला लाजपत राय को पंजाब केसरी के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना भी की थी। सन 1927 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में ब्रिटेन से 7 लोगों का एक समूह (जिसे कमीशन का नाम दिया गया था) भारत आया था। इसके अध्यक्ष के नाम पर इसका नाम साइमन कमीशन रखा गया था परंतु भारतीयों को यह बिल्कुल भी मंजूर न था, क्योंकि इस कमीशन में एक भी भारतीय शामिल ना था। इसलिए भारत में इसका विरोध हुआ और लाला लाजपत राय द्वारा यह नारा दिया गया।


"आराम हराम है" (जवाहरलाल नेहरू) 


जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। उन्होंने युवाओं को परिश्रमी बनाने के लिए यह नारा दिया था।


"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" (सुभाष चंद्र बोस) 


सुभाष चंद्र बोस द्वारा यह नारा अपने एक भाषण में दिया गया था। यह बर्मा में 4 जुलाई 1944 को हुआ था। इसमें उनके द्वारा भारतीयों से यह विनती की गई -"Give me blood and i shall give you freedom"। इस नारे ने भारतीयों में जोश भर दिया तथा वे देश के प्रति समर्पित होने और बलिदान देने के लिए तैयार हो गए।


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