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पर्यटन स्थल हर्षिल का है रोचक इतिहास, जहा एक अंग्रेज का राज चलता था - Know About Harshil

वह जुलाई १९८५ का समय था जब राज कपूर द्वारा निर्मित फिल्म राम तेरी गंगा मैली रिलीज़ हुयी और सिनेमा हॉल में चर्चा का विषय बनी। इस फिल्म में कुछ दृश्यों को पहाड़ों में शूट किया गया था, और जो जगह इस फिल्म की शूटिंग के लिए चुनी गयी थी उस जगह का नाम है हर्षिल, जिसे भारत का स्विट्ज़ेरलैंड के नाम से जाना जाता है। यह खूबसूरत जगह समुद्र तल से 7860 फ़ीट की ऊंचाई पर स्तिथ है। भागीरथी नदी के तट पर बसा हर्षिल उत्तरकाशी से 80 किलोमीटर दूर व गंगोत्री से 20 किलोमीटर पहले रस्ते में आने वाला एक गांव है,  जहां एक ओर भागीरथी नदी की कल कल ध्वनि उद्वेलित होती है तो दूसरी ओर यह जगह कई और छोटे झरनो, व गधेरों से भरपूर है। राम तेरी गंगा मैली फिल्म में मंदाकिनी का सनसनीखेज निर्त्य जिस झरने का सामने हुआ था, वह झरना अब वैसा नहीं है जैसा फिल्म में दिखाया गया था, परन्तु अब उस झरने का नाम मंदाकिनी झरना पड़ गया है। सर्दियों के मौसम में जब यहाँ चारो तरफ बर्फ की स्वेत चादर से पहाड़ और देबदार के पेड़ आच्छादित होते हैं तो हर्षिल बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लगता है  और इस घाटी की तुलना स्विट्ज़रलैंड से की जा सकती है। 




इतिहास (History of Harshil)


हर्षिल का इतिहास बहुत ही ज्यादा रोचक है। ऐसा अनुमान है कि ब्रिटिश सेना का एक सैनिक Frederick E. Wilson सेना से भागकर पहाड़ों में छुपना चाहता था, और उसे गंगोत्री वाले मार्ग में हर्षिल दिखा, वह उस जगह से इतना प्रभावित हुआ कि उसने वही बसने का फैसला कर दिया, और करता भी क्यों न, हर्षिल में प्रकृति ने बेशुमार खूबसूरती बक्शी हुयी है, चारो तरफ देबदार के वृक्ष, फूल, हिमाच्छादित हिमालय की चोटियां और भागीरथी नदी की कल कल ध्वनि इस जगह को मंत्रमुग्ध बना देती है। विल्सन ने यहाँ पर एक बंगला बनाया जो अब किसी दुर्घटना में जल के ख़ाक हो गया था और वर्तमान में वन विभाग ने वह पर अपन डाक बंगला बनाया है। 


विल्सन को हर्षिल में रहते हुए कुछ दिन हुए और उसे एक स्थानीय लड़की से प्यार हो गया, जिसका नाम था रैमता, जिस से उसे कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई। अपनी बन्दूक से उसने पहले तो पहाड़ी लोगो को डराया और बाद में हिरणों व अन्य जंगली जानवरों का शिकार करके उनकी खाल, कस्तूरी को इंग्लैंड में बेचने लगा। उसका ध्यान इसी बीच वह हिमालयन देबदार की लकड़ी का व्यापार करने लगा, उत्तरकाशी क्षेत्र टिहरी राज्य के अंतर्गत आता था। टिहरी के राजा के पास उस वक़्त खजाने में ज्यादा धनराशि न होने के कारण उन्होंने लकड़ी के व्यापर के लिए विल्सन से समझौता कर लिया था और वह अपना राजस्व लेने लगे। विल्सन ने लकड़ियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का नायाब तरीका निकला था, वह लकड़ियों को भागीरथी नदी में बहा देता था और उसके लोग उन लकड़ियों को दूसरी जगह पहुंचने पर निकाल लेते थे, यह व्यापार करके उसने बहुत ज्यादा धनराशि का उपार्जन किया।


कुछ समय के पश्चात् विल्सन को वहां की एक और महिला से प्यार हो गया, जिसका नाम संग्रामी बताया जाता है, उसे गुलाबो नाम से भी सम्बोधित करते थे। उसने गुलाबो से शादी की और फिर उनकी तीन संताने हुयी, Nathaniel, Charles, और Henry. अपने व्यवसाय से वह इतना धनवान और शक्तिशाली हो गया कि उस पर टिहरी गढ़वाल के राजा के नियंत्रण से भी बहार हो गया जिसके फलस्वरूप उसे हर्षिल का राजा माना जाने लगा। वह के स्थानीय लोग उसे पहाड़ी विल्सन या राजा विल्सन नाम से जानने लगे। 


विल्सन के व्यापारिक प्रयासों से हर्षिल में भी विकास हुआ और साथ ही साथ टिहरी के राजा का कोष भी कई गुना बढ़ गया। विल्सन ने अन्य जगह भी पैसा निवेश किया और हर्षिल के लिए इंग्लैंड से स्पेशल जाती का सेब मंगाया। उसकी इस कोशिश ने स्थानीय लोगों के विकास में बहुत मदद की, जिसके फलस्वरूप आज हर्षिल का ज्यादातर सेब भारत से एक्सपोर्ट होता है। उसने मसूरी में एक होटल भी बनाया था जिसका नाम चार्ली विला था, यही होटल आज लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशाशनिक अकादमी है। मसूरी में ही विल्सन की कब्र भी है। 


कैसे जाएँ व कब जाएँ (When and How to Go to Harshil)


हर्षिल जाने के लिए ऋषिकेश से सड़क मार्ग से आ सकते हैं, जबकि ऋषिकेश तक ही रेल सर्विस है। सबसे पास का एयरपोर्ट देहरादून में है और प्राइवेट हेलीकाप्टर की सर्विस भी ली जा सकती है। अप्रैल से जून या फिर सितम्बर से नवंबर में यहाँ पर मनमोहक मौसम होता है। दिसंबर से यहाँ पर बर्फ़बारी शुरू हो जाती है, यहाँ की प्राकृतिक व नैसर्गिक खूबसूरती को आप निहार सकते हैं।  


आसपास क्या है खास (Surrounding Places of Harshil)


हर्षिल गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर मुखवा गांव है जहां पर माँ गंगा की डोली सर्दियों में लायी जाती है, क्योंकि अत्यधिक हिमपात की वजह से गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, उस वक़्त पर गंगा माता की मूर्ती के दर्शन मुखवा गांव में किये जा सकते हैं। 




गंगोत्री नेशनल पार्क हर्षिल से केवल 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, इस पार्क में विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी देखे जा सकते हैं, मुख्यतः Himalayan Snow Lepord (हिम तेंदुआ), Himalayan Brown Bear (हिमालयन भालू), Monal (मोनाल पक्षी) जो उत्तराखंड का राज्यपक्षी भी है, देखे जा सकते हैं। 


धराली यहाँ से केवल 4 किलोमीटर की दूरी पर है, यहाँ पर सेब के बागान हर वक्त इस जगह को अधिक रमणीक बनाते हैं। यहाँ से भागीरथी के दूसरे छोर पर मुखवा गांव पहाड़ी पर देखा जा सकता है। 


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