History of Indian Army Day
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जानिए, भारतीय सेना की कमान कैसे ब्रिटिश हाथों में जाने से बच गई

स्वतंत्रता से पहले, भारत और पाकिस्तान एक ही राष्ट्र हुआ करते थे। इस राष्ट्र पर ब्रिटिश शासन लागू होता था यानी कि सरकार हो या सेना 'ब्रिटिश' शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। भारत में सरकार को जरूर ब्रिटिश सरकार या अंग्रेजी हुकूमत में निर्दिष्ट किया जाता था  लेकिन सेना को 'भारतीय सेना' के रूप में ही जाना जाता था। यह वाक्या एक स्पष्ट ऐतिहासिक लेख या पुस्तक में भी उपयोग किया गया है। ब्रिटिश शासन काल में भी भारतीय सेना ने कई मोर्चों पर युद्ध लड़े और भारत ही नहीं अपितु अन्य स्थानों पर भी अंग्रेजों को विजय प्राप्त कराई। भारतीय सेना में ब्रिटिश काल के दौरान भारतीयों को सेना में उच्च पद पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उन्हें निम्न पदों पर ही सेवा का मौका दिया जाता था और वहीं से सेवानिवृत्त किया जाता था। सन 1922 में के.एम. करिअप्पा पहले व्यक्ति थे जिन्हें भारतीय सेना में उच्च पद पर नियुक्त किया गया।

देश में स्वतंत्रता आंदोलन की लहर के बाद आखिरकार वर्ष 1947 में देश आजाद हो गया लेकिन विभाजन के रूप में देश को दो भागों भारत और पाकिस्तान के रूप में बांटा गया। आजादी के बाद भी कुछ सालों तक भारतीय सेना की कमान ब्रिटिश अधिकारियों के हाथों में ही थी जिससे कि भारतीय सेना की कमान ब्रिटिश अधिकारी के पास ही थी।


आखिर कैसे आई कमान भारतीय हाथों में


स्वतंत्रता के कुछ समय बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व देश के अन्य उच्च व्यक्तियों ने भारतीय सेना के प्रथम चीफ कमांडर को नियुक्त करने के संबंध में एक मीटिंग का आयोजन किया। इस सभा में यह बात रखी गई कि देश अब आजाद हो चुका है तो क्यों ना अब भारतीय सेना की कमान भी किसी भारतीय के पास आ जाए? सभी ने अपनी राय व अपने सुझाव रखे। मीटिंग में काफी चर्चा-परिचर्चा के बाद-

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा : "मुझे लगता है कि हमारे पास अभी अधिक अनुभव नहीं है जिस कारण हमें किस ब्रिटिश अधिकारी को ही भारतीय सेना का चीफ कमांडर बनाना चाहिए।"
 
प्रधानमंत्री के इस सुझाव से, इस कथन से लगभग सभी लोग सहमत भी हो चुके थे लेकिन तभी सभा से ही एक व्यक्ति ने कहा : "सर मैं कुछ कहना चाहता हूं।"

नेहरू जी ने कहा : "जरूर आप अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र हैं।"

उस व्यक्ति ने कहा : सर आप जानते हैं कि हमारे पास देश का नेतृत्व करने के लिए अधिक अनुभव नहीं है तो क्यों ना हम किसी ब्रिटिश व्यक्ति को ही इस देश का प्रधानमंत्री बना दें?"

यह बात सुनकर सभा में सन्नाटा पसर गया।

नेहरू जी ने उस व्यक्ति से कहा : "क्या आप इस इस देश के कमांडर चीफ बनना चाहेंगे।"
नेहरू जी की इस बात के बावजूद उस व्यक्ति के पास भारतीय सेना का चीफ बनने का सुनहरा अवसर था लेकिन उन्होंने इस अवसर को ठुकराते हुए कहा "सर हमारे देश के बहुत से योग्य व नेतृत्व वाले अफसर है जिनमें से मेरे सीनियर के.एम. करिअप्पा हम सब में से सबसे योग्य व कुशल अधिकारी हैं।

सभा के दौरान प्रधानमंत्री के समक्ष निडर और निर्भीक आवाज में अपनी बात रखने वाले व्यक्ति लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौड़ थे।

लेफ्टिनेंट जनरल राठौर के सुझाव के बाद जनरल के. एम. करिअप्पा को देश की सैन्य कमान सौंपी गई, जिससे आजाद भारत की सैन्य कमान ब्रिटिश हाथों में जाने से बच गई।


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सेना दिवस 15 जनवरी (Army Day)


15 जनवरी 1949 को स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय सेना प्रमुख के. एम. करियप्पा ने ब्रिटिश कमांडर चीफ सर  फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान अपने हाथों में ली। किसी भारतीय अधिकारी के पास पहली बार भारतीय सेना की कमान आने से इस दिन को 'सेना दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

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