ल्यूडमिला पेवलिचेंको एक यूक्रेनियन सोवियत रेड आर्मी की महिला स्नाइपर थी। उनके बारे में कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्होंने नाजी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे । उन्होंने नाजी के 300 से भी ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिए थे वह हिटलर की सेना के लिए अकेली ही भारी पड़ गई थी।
इतिहास में अनेक महिला किवंदितियों का जिक्र मिलता है उनमें से एक नाम आता है ल्यूडमिला पेवलिचेंको का।
कौन थी ल्यूडमिला पेवलिचेंको ?
ल्यूडमिला पेवलिचेंको एक यूक्रेनियन सोवियत रेड आर्मी की महिला स्नाइपर थी। उनके बारे में कहा जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्होंने नाजी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे । उन्होंने नाजी (हिटलर की सेना) के 300 से भी ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिए थे वह हिटलर की सेना के लिए अकेली ही भारी पड़ गई थी । आज ल्यूडमिला पेवलिचेंको को इतिहास के सबसे कामयाब और खतरनाक स्नाइपरस में गिना जाता है।
जीवन परिचय- जन्म: 12 जुलाई 1916 बिला तसेरकवा, यूक्रेन में ल्यूडमिला का जन्म हुआ।इनकी माता अध्यापिका और पिता फैक्टरी में काम करते थे।1963 में महज 16 साल की उम्र में उनकी शादी एक डॉक्टर से हुई। लेडी डेथ के नाम से प्रसिद्ध ल्यूडमिला ने 1941 में रेड आर्मी जॉइन की।वह एक प्रशिक्षित असाधारण शूटर के साथ साथ हथियारों और शूटिंग तकनीकी में निपुण महिला थी।
कैसे बनी इतिहास में किवंदिति?
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सोवियत यूनियन ने करीब 2000 महिलाओं को बतौर स्नाइपर फौज में भर्ती किया था उन्हीं में से एक बेस्ट स्नाइपरस थी पिवलिचेंको। हालांकि इतिहास का सबसे खतरनाक पुरुष स्नाइपर सिमो हेहा को कहा जाता है ।उन्होंने सन 1939 -40 के करीब 542 सैनिकों को मारा था। वही महिला स्नाइपर्स ल्यूडमिला पेवलीचेंको ने 309 सैनिकों को मारने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। फलस्वरूप उन्हें इतिहास में डेथ लेडी के नाम से भी जाना जाता है।
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वह मात्र 24 वर्ष की थी जब उन्होंने हथियार उठाना प्रारंभ किया सन 1941 में उन्होंने यूक्रेन कीव यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री की पढ़ाई की वह चोथे साल में भी जर्मनी ने सोवियत यूनियन पर हमला कर दिया था। तब वह रिक्रूटिंग ऑफिसर में पहले राउंड में भर्ती होने वाले वालिएंटर्स में से एक थी। बाद में वे वहां से रेड आर्मी की 25 राइफल्स डिवीजन में शामिल हो गई थी हालांकि वह नर्स भी बन सकती थी। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। वह 2000 महिला स्नाइपर्स की आर्मी में शामिल हो गई जिनमें से युद्ध के बाद 500 ही जीवित बची थी। ल्यूडमिला ने सेज ऑफ ओडिसा के पास लगभग ढाई साल तक लड़ाई लड़ी। जहाँ उन्होंने 187 लोगों को मार गिराया था। जब रोमानिया को ओडिशा पर नियंत्रण मिल गया तब उनकी यूनिट को सेवाराष्ट्र पोल गया । जहां पेवलिचेंको ने 8 महीने तक लड़ाई लड़ी। मई 1942 तक लेफ्टिनेंट ल्यूडमिला 257 जर्मन सैनिकों को मार चुकी थी । द्वितीय विश्वयुद्ध में उनके द्वारा प्रमाणित हत्याओं की संख्या 309 है।
अवार्ड- रेड आर्मी में मेजर की रैंक मिलने के बाद भी ल्यूडमिला ने कभी भी कॉम्बैट में वापसी नहीं की। वह इंस्ट्रक्टर के रूप में कार्य करने लगी ।युद्ध खत्म होने तक वह सोवियत स्नाइपर्स को ट्रेनिंग देने का काम करने लगी। सोवियत गणराज्य ने पावलीचेंको को हीरो के तौर पर 1943 में गोल्ड स्टार की उपाधि से नवाजा ।और 16 जुलाई 1942 को टू ऑर्डर ऑफ लेनिन मेडल फॉर बैटल मेरिट अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया ।
बाद में ल्यूडमिला को पब्लिसिटी विजिट पर कनाडा और यूएसए भेजा गया वह सोवियत यूनियन की पहली नागरिकों बनी जिनकी अगुवाई अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने व्हाइट हाउस में की। यूएसए ने उन्हें 1 सेंटीमीटर ऑटोमेटिक पिस्टल गिफ्ट की और कनाडा में उन्हें विंचेस्टर राइफल दी गई जो अभी मास्को के सेंट्रल आर्म्ड फोर्स के म्यूजियम में रखी हुई है।
सोवियत संघ और जर्मनी के युद्ध की समाप्ति के बाद ल्यूडमिला ने कीव यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा पूरी की और इतिहासकार के तौर पर अपने कार्यभार को आगे बढ़ाया और 1945 से 1953 तक पेवलिचेंको ने सोवियत नेवी की चीफ हेड क्वार्टर में रिसर्च की नौकरी की।
मृत्यु- जून 1942 में पेवलिचेंको मोटार्ट फायर में घायल हो गई बढ़ते खतरे और अपने नाम की चर्चा की वजह से उन्होंने कॉम्बैट में अपने कदम पीछे खींच लिए ।10 अक्टूबर 1974 में महज 58 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई उन्हें मास्को में दफनाया गया।और लेडी डेथ के नाम से प्रसिद्ध इस साहसी महिला का अंत हो गया।