एक किसान का जीवन बेहद ही कठिन और दुखों से भरा रहता है। कभी उसको पारिवारिक फिक्र, तो कभी पर्यावरणीय (वर्षा, धूप) चिंता; इसी कशमकश में एक किसान का जीवन चला जाता है। Story of Mahatma Buddha
किसी गांव में रहने वाला एक किसान अपने जीवन में चल रहे तनाव व दुखों से बहुत दुखी था। किसी ने उसे बताया कि आप अपने दुखों के समाधान के लिए महात्मा बुद्ध की शरण में चले जाओ, वे महान आत्मा अवश्य आपकी सहायता करके आपके दुखों को दूर कर देंगे। यह सुनकर वह किसान अगले दिन महात्मा बुद्ध के पास चला गया।
वह गौतम बुद्ध के पास पहुंचा और कहने लगा 'हे महात्मा मैं एक किसान हूं और मैं अपनी जीविका चलाने के लिए खेती-बाड़ी करता हूं, लेकिन कई बार वर्षा ना होने से फसल सूखे की भेंट चढ जाती है।' किसान ने आगे कहा कि मैं एक विवाहित पुरुष हूं मेरी पत्नी मेरा ख्याल रखती है और मैं उससे बहुत प्रेम करता हूं, लेकिन कभी-कभी वह मुझे परेशान करती है जिससे मुझे लगता है कि मैं उससे अब ऊब चुका हूं और वह मेरे जीवन में ना होती तो कितना अच्छा होता।
भगवान बुद्ध उस किसान की बातों को ध्यान पूर्वक सुनते रहे।
किसान ने आगे बताया कि मेरे बच्चे भी हैं और वे बहुत अच्छे हैं लेकिन कभी-कभी जब वह मेरा कहना नहीं मानते तो उस समय मुझे क्रोध आता है और सोचने लग जाता हूं कि जैसे यह मेरे बच्चे हो हीं ना। किसान लगातार अपने दुखों को बुद्ध से बताता गया लेकिन महात्मा बुद्ध ने बीच में एक शब्द भी नहीं बोला। अंत में जब किसान के पास कोई समस्या नहीं रही तो वह चुप हो गया और मन हल्का करके बुध के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।
लेकिन Mahatma Buddha चुपचाप रहे और किसान अब बस उनके जवाब का इंतजार करता रहा। अंत में जब किसान का सब्र फूटा तो ऊंची आवाज में उसने भगवान बुद्ध से कहा- "क्या आप मेरी समस्याओं का समाधान नहीं करेंगे?"
"मैं तुम्हारी किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं कर सकता।" बुद्ध ने उत्तर दिया।
किसान को यह सुनकर तो कुछ देर खुद के कानों पर यकीन नहीं हुआ। 'ये आप क्या कह रहे हैं लोगों ने कहा कि आप सभी के दुखों का समाधान करते हैं तो क्या आप मेरे दुखों का निवारण नहीं करेंगे?'
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बुद्ध ने कहा, "सभी के जीवन में कठिनाइयां होती हैं, तुम्हारे जीवन में ऐसी कोई कठिनाइयां नहीं है जिनका मैं समाधान करूं। यह कठिनाइयां तो सभी के जीवन में आती हैं। यह तो विधि का विधान है कभी मनुष्य सुखी होता है तो कभी दुखी।" कभी उसे पराए अपने लगते हैं तो कभी वह अपनों को पराया समझने लग जाता है। यह जीवन चक्र है जिससे कोई नहीं निकल सकता। सिर्फ तुम्हारा ही नहीं सभी लोगों का जीवन समस्याओं से ग्रसित है जिस कारण में इन समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।
यदि किसी एक समस्या का मैं समाधान कर भी लूं तो उसकी जगह कोई दूसरी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। यही जीवन का कटु सत्य है।
किसान यह सुनकर क्रोधित हो गया और कहने लगा कि 'सब लोग कहते हैं कि आप महात्मा हो, मैं आपके पास एक आस लेकर आया कि आप मेरी सहायता जरुर करेंगे लेकिन आप जब समाधान नहीं कर सके तो मेरा यहां आना व्यर्थ हुआ। इसका अर्थ यह है कि लोग झूठ बोलते हैं मुझे आपके पास आना ही नहीं चाहिए था।
इतना कहकर किसानों वहां से जाने लगा तभी बुद्ध ने कहा "मैं तुम्हारी इन समस्याओं का तो नहीं लेकिन एक दूसरी समस्या का समाधान कर सकता हूं।"
किसान आश्चर्यचकित रह गया और कहने लगा कि मेरी इन समस्याओं के अलावा दूसरी समस्या भला क्या हो सकती है?
बुद्ध ने कहा कि वह समस्या यह है कि -
"तुम नही चाहते कि तुम्हारे जीवन में कोई समस्या हो"
इसी समस्या के कारण ही दूसरी कई समस्याओं को जन्म हुआ है। तुम इस बात को स्वीकार कर लो की सिर्फ मेरा ही नहीं अपितु संसार में सभी का जीवन दुखों से भरा पड़ा है। तुम अपने आसपास तो देखो क्या वह लोग तुम से कम दुखी हैं? तुम्हें अपना दुख बड़ा लगता है और जो लोग तुम्हारे आसपास हैं उनको अपना दुख। इस दुनिया में सभी को अपना दुख बड़ा लगता है चाहे छोटा हो या बड़ा लेकिन जिसके साथ हो रहा है उसको बड़ा ही लग रहा है।
यदि तुम ध्यानपूर्वक देखोगे तो यह जीवन सुख-दुःख से भरा हुआ है इसको तुम कभी नहीं बदल सकते हो। लेकिन तुम सुख-दुख से अवश्य ऊपर उठ सकते हो, यह तुम्हारे लिए संभव है। Story of Mahatma Buddha
सुख-दुख को हम आने से रोक नहीं सकते हैं लेकिन सुख और दुख का हम पर कोई प्रभाव न पड़े ऐसी व्यवस्था हम कर सकते हैं। सुख-दुख के आने से हमें विचलित नहीं होना बल्कि धैर्य से सामना करना है।
इतना कहकर किसान बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा।
यह प्रकृति का नियम है दोस्तों, जिसमें परिवर्तन होता रहता है। दुख और सुख आते रहेंगे बस हमें उनके साथ अच्छे से मुकाबला करना होगा। सुख के आने पर हमें अति उत्साह नहीं होना चाहिए और दुख के आने पर हमें डटकर मुकाबला करना चाहिए। भगवान बुद्ध द्वारा इस गाने में यही कहा गया कि हमें मुश्किलों या दुखों से घबराना नहीं बल्कि सामना करना है।