ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में मुख्यत: अपना व्यापार स्थापित करने के लिए आई थी समय के साथ-साथ ब्रिटिश कंपनी का लालच बढता गया जिसमें भारत को लूटने की चाल और सत्ता जमाने के लिए कंपनी बेताब थी। भारत के राजाओं ने यह स्थिति भांप ली थी इसलिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी व भारत के मध्य एक एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए जिसमें कहा गया था की 'ईस्ट इंडिया कंपनी को केवल व्यापार करने की छूट दी गई है और स्पष्ट तौर पर निर्देशित किया गया है कि ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की राजनीतिक , सामाजिक पक्षों में हस्तक्षेप नहीं करेगी वहीं ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी अपने शर्त रखी कि व्यापार की भाषा केवल अंग्रेजी होगी'।
1757 में प्लासी का युद्ध होने पर भारतीय इतिहास की कायापलट हो गई यह वह समय था जब ब्रिटिश राज पूर्णता भारत में स्थापित हो गया भारतीयों के लिए यह युद्ध आंधी तूफान के समान साबित हुआ 'प्लासी के युद्ध' में अंग्रेजों के विजय होने से ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश संसद में घोषणा की कि 1757 के बाद यदि ब्रिटिशर्स चाहे तो भारत पर राज कर सकते हैं
1773 से भारत में अपनी धाक जमाने के लिए अंग्रेजों ने नियम कानून का निर्माण किया जिसमें सर्वप्रथम उन्होंने रेगुलेटिंग एक्ट 1773 बनाया इसके पश्चात ब्रिटिश अपनी सत्ता को और अधिक सशक्त बनाने के लिए आते हुए और उन्होंने हर 10 साल के अंतराल में अपने चार्टर एक्ट पारित किए इन्हीं चार्टर एक्ट में से एक महत्वपूर्ण चार्टर एक्ट 1813
चार्टर एक्ट 1813 से पारित होने से पहले 1781 में कोलकाता में 'वारेन हेस्टिंग्स' जो कि बंगाल का प्रथम गवर्नर था इसने कलकत्ता में 'मुस्लिम वर्ग' के लिए कुरान पर आधारित पाठ्यक्रम की व्यवस्था के लिए 'कोलकाता मदरसा' की स्थापना की यह कॉलेज केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए खुला वही 1791 में 'जोनाथन डंकन' ने बनारस में संस्कृत हिंदू कॉलेज की स्थापना की जिसमें केवल हिंदू वर्ग के लोगों को शिक्षा के लिए प्रवेश दिया गया।
चार्टर एक्ट 1813 की 43 वीं धारा
भारत में ब्रिटिश प्रशासन ने पहली बार 1813 का चार्टर अधिनियम के तहत 43 वी धारा में शिक्षा को रखा गया
पहली बार भारतीय शिक्षा के लिए एक लाख की बड़ी धनराशि को व्यय करने की घोषणा की गई जिसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया की एक लाख की धनराशि किन विद्वानों पर खर्च की जाएगी क्या वह विद्वान भारतीय जोकि अंग्रेजी साहित्य के विद्वान होंगे या फिर भारतीय विद्वान जोकि संस्कृत उर्दू और फारसी जैसी भाषाओं में पारंगत है
उत्पन्न हुआ विवाद
एक लाख की धनराशि को किन विद्वानों पर व्यय किया जाए यह प्रश्न यहां पर खड़ा हो गया
इस प्रश्न के उत्तर में दो समूह सामने आए ओरिएंटल एंड ऑक्सीडेंटल अर्थात प्राच्यवाद व पाश्चात्य वाद
ओरिएंटल एंड ऑक्सीडेंटल कंट्रोवर्सी प्राच्य और पाश्चात्य विवाद।
प्राच्य और पाश्चात्य विवाद ब्रिटिश संसद के ही 10 सदस्य थे जो कि दो समूह मैं ₹100000 की धनराशि को किन विद्वानों पर खर्च करना है साथ ही निर्देशित करने का माध्यम अंग्रेजी होगा या हिंदी जैसे प्रश्नों के उत्तर देने के कारण विचारधारा ना मिलने पर दो भागों में बांट दें जिससे जिसे पाश्चात्य व प्राच्य विवाद के नाम से जाना जाता है
पाश्चात्य वाद के समर्थक 1813 के चार्टर एक्ट में घोषित हुए एक लाख की धनराशि को पाश्चात्य शिक्षा अर्थात अंग्रेजी या हिंदी शिक्षा के पक्षधर थे उनका मानना था एक लाख की धनराशि का व्यय भारत में अंग्रेजी साहित्य व यूरोपियन ज्ञान विज्ञान को प्रचारित प्रसारित करने के लिए किया जाना चाहिए।
प्राच्य वादी (ओरिएंटल ) समर्थक अंग्रेज थे लेकिन यह भारतीय भाषाओं को संस्कृत, फारसी ,अरबी को माध्यम बनाना चाहते थे साथ ही ₹100000 की धनराशि भारतीय विद्वान जो कि संस्कृत, उर्दू, फारसी के अच्छे जानकार थे उन पर व्यय करना चाहते थे।
इस विवाद को निपटाने के लिए भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने लार्ड मैकाले को भारत बुलाया और लॉर्ड मेकाले को 10 जून 1834 को पब्लिक कमेटी इंस्ट्रक्शन का चेयरमैन बनाकर भारत बुलाया।
मैकाले का विवरण पत्र
10 जून 1834 को जब लॉर्ड मैकाले भारत आया तो उस समय राज्य व पाश्चात्य विवाद अपने उग्र तम रूप में था बैंक को मैकाले पर पूर्ण विश्वास था कि मैं मैकाले जैसा प्रकांड विद्वान इस विवाद को समाप्त कर सकता है उसने निकालें को बंगाल की लोक लेखा समिति का सभापति नियुक्त किया और सन 1813 के आज्ञा पत्र कि 43 में धारा में अंकित एक लाख की धनराशि को लेकर आने और अन्य विवाद ग्रस्त विषयों के संबंध में रिपोर्ट देने का अनुरोध किया साथ ही साथ लॉर्ड विलियम बेंटिक ने प्राच्या वादी और पाश्चात्य वादी दोनों समूह के सदस्यों को मैकाले के सामने अपने विचारों को रखने का आदेश दिया।
मैकाले ने सर्वप्रथम 43 वी धारा का अध्ययन किया उसके पश्चात पाश्चात्य वादी और प्राच्य वादी विवादों के व्यक्तियों को ध्यान में रखकर अपने प्रसिद्ध विवरण मैकाले मिनट्स मैकाले का घोषणा पत्र को 2 फरवरी सन 1835 को लॉर्ड विलियम बेंटिक के पास भेज दिया
मैकाले का विवरण पत्र के 2 अंश इस प्रकार से हैं
43 वी धारा की व्याख्या मैकाले ने अपने विवरण पत्र में 1813 की आज्ञा पत्र की व्याख्या निम्नलिखित प्रकार से की है
₹100000 की धनराशि व्यय करने के लिए सरकार पर कोई प्रतिबंध नहीं है वह इस धनराशि को अपनी इच्छा अनुसार किसी भी प्रकार व्यय कर सकती है।
साहित्य शब्द के अंतर्गत केवल अरबी और संस्कृत साहित्य ही नहीं अपितु अंग्रेजी साहित्य भी शामिल किया जा सकता है।
भारतीय विद्वान मौलवी एवं संस्कृत के पण्डित ही नहीं बल्कि अंग्रेजी साहित्य के विद्वान भी शामिल हैं।
अंग्रेजी के पक्ष में तर्क
आज्ञा पत्र की 43 वीं धारा की व्याख्या करने के बाद में मैकाले ने अंग्रेजी के माध्यम से पाश्चात्य ज्ञान और विज्ञान की शिक्षा का शक्तिशाली समर्थन किया सर्वप्रथम मैकाले ने भारतीय भाषाओं को अध्ययन के लिए पूर्णता निरर्थक बताया और लिखा।
कि भारत के निवासियों में प्रचलित देशी भाषाओं में साहित्य तथा वैज्ञानिक ज्ञान कोष का अभाव है इतनी अवश्य तथा गवालू है कि जब तक उनको पाया भंडार से संपन्न नहीं किया जाएगा तब तक उनसे किसी भी महत्वपूर्ण पुस्तक की सरलता से अनुवाद ना हो सकेगा
फिर भारतीय भाषाओं की निरर्थक का सिद्ध करने के पश्चात मैकाले ने अरबी फारसी और संस्कृत की अपेक्षा अंग्रेजी को कई अधिक उच्च स्थान देते हुए लिखा कि एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी में रखी पुस्तकें भारत और अरब के संपूर्ण साहित्य के बराबर है।
अरबी और संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी अधिक उपयोगी है क्योंकि वह नवीन जान की पूंजी है अंग्रेजी इस देश के शासकों की भाषा है भारत के उच्च वर्गों द्वारा बोली जाती है और पूर्वी समुद्र में व्यापार की भाषा बन सकती है
जिस प्रकार से लैटिन एवं यूनानी भाषाओं से इंग्लैंड और पश्चिम यूरोपीय भाषाओं से रूस का पुनरुत्थान हुआ है उसी प्रकार से अंग्रेजी से भारत का उत्थान होगा
अंग्रेजी शिक्षा द्वारा देश में ऐसे व्यक्तियों का निर्माण किया जाए जो कि रंग रूप से भारतीय हो परंतु विद्वता में अंग्रेज हो
भारतीय साहित्य में संस्कृत उर्दू अरबी फारसी के उत्थान में धन गए करना मूर्खता है उससे अच्छा अंग्रेजी के शिक्षण संस्थानों में धन्य किया जाए।
मैकाले की विवरण पत्र के गुण
पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान के द्वार खोले राजनीतिक जागृति पैदा करने के लिए लॉक जैसे महान विद्वान की दर्शन को पढ़ने का सुझाव दिया यूरोपियन साहित्य को भारत मैं स्थान दिया शिक्षा में धार्मिक तटस्थता की नीति को अपनाने पर बल दिया और शिक्षा नीति को स्थायित्व प्रदान किया।
आलोचनाएं
भारतीय भाषाओं का अपमान किया गया भारतीय संस्कृति व साहित्य का अपमान किया धार्मिक एकता को नष्ट करने का षडयंत्र रचा गया।
शिक्षा को ऐसा मोहरा बनाया गया जिससे कि भारतीय पाश्चात्य रंग में रंगे हुए हो और स्वामी भक्त जोकि ब्रिटिश इंडिया के लिए काम कर सके
लॉर्ड मेकॉले ने 2 फरवरी 1835 को लॉर्ड विलियम बेंटिक के पास अपनी रिपोर्ट सौंपी
7 मार्च 1835 में एक विज्ञप्ति द्वारा सरकार की इस शिक्षा नीति को लॉर्ड विलियम बैंटिक ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया
एक लाख की धनराशि अंग्रेजी शिक्षा के लिए व्यय किया जाएगा साथ ही यहां पर प्राच्य पाश्चात्य विवाद समाप्त होता है।
मैकाले की संस्तुति पर भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रारंभ हुआ व भारत को यूरोपियन ज्ञान की प्राप्ति हुई दुर्भाग्य से भारतीय ज्ञान के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति भी अपना बैठे।