श्रावन का मास भगवान को अत्यधियक प्रिय है। भोलेनाथ के भक्तों को इस मास का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। इस महीने भक्तिभाव से शिव की पूजा करने वाले भक्तों पर भोलेनाथ की असीम कृपा बनी रहती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार श्रावन के मास की अपार महिमा है। मान्यता है कि सावन के महीने में माता पार्वती के द्वारा की गई कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव श्रावन का मास भगवान को अत्यधियक प्रिय है। भोलेनाथ के भक्तों को इस मास का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। इस महीने भक्तिभाव से शिव की पूजा करने वाले भक्तों पर भोलेनाथ की असीम कृपा बनी रहती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार श्रावन के मास की अपार महिमा है।
मान्यता है कि सावन के महीने में माता पार्वती के द्वारा की गई कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती संग विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव सभी 12 राशियों में से 3 राशियों पर असीम कृपा बनाएं रखते हैं। बता दें, माना जाता है कि यह तीन राशियाँ मेष, मकर और कुंभ है। इस समय शिव पूजन करने से मन शांत रहता है और भाग्य उदय होने के मार्ग खुल जाते हैं।
सावन के महीने शिवलिंग अभिषेक (Worship of Lord Shiva)
करने का महत्व
पारंपरिक तौर पर अभिषेक करने हेतु शिवलिंग पर दूध, जल, बेल-पत्र चढ़ाया जाता है। सावन के महीने में दुग्धधारी पशु घास चरने के साथ साथ उसमें लगे कीड़े मकोड़े भी खा लेते हैं। इससे वह अमृत सम दूध विष का रूप धारण कर लेता है। मान्यता के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय ने विष धारण किया था, उसी प्रकार विष रूपी दूध के दुष्प्रभावों से बचने हेतु सावन के मास में भगवान शिव को दूध अर्पण करने की विधिं है। मान्यता यह है भी कि शिवलिंग पर प्रतिदिन गाय का कच्चा दूध चढ़ाने से हर मनोकामना पूरी होती है। इसका कारण है हिन्दू धर्म मे गाय को माता समान पूजनीय माना गया है।
अतः गाय माता का दूध परम पवित्र पूजनीय है। शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करने का एक और कारण दूध की शीतल प्रतिविर्ति है। भगवान शिव के सर पर सुशोभित चंद्रमा इस बात का प्रमाण है कि भोलेनाथ को शीतलता अत्यंत प्रिय है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दूध को भी चंद्र ग्रह से संबंधित माना गया है। चंद्र ग्रह के सभी दोषों से मुक्ति पान हेतु शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करने का महत्व है। दूध के आलावा शिव जी को जल भी अर्पण किया जाता है। जलाभिषेक करने के महत्व का सीधा संदर्भ भी शीतलता से जुड़ा है।
माना जाता है कि समुन्द्र मंथन के समय जब भोलेनाथ ने विष पान किया तो उनका मस्तिष्क गर्म हो गया। इसके उपरांत देवताओं ने भोलेनाथ के माथे पर जल बहाकर उन्हें शीतल किया। अर्थात शिवलिंग का जलाभिषेक करने से वहाँ मौजूद नकारात्मक शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं। आध्यात्मिक तौर पर कहा जाता है कि इंसान के माथे के मध्य आग्नेय चक्र मौजूद होता है, जो मनुष्य को सोचने की क्षमता प्रदान करता है। यही चक्र पिंगला और इडा नाड़ियों को मिलने का स्थान है जिसे शिव का स्थान भी कहते हैं।मन को शांत रखने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक करने की मान्यता है।

शिवलिंग का जलाभिषेक करने का वैज्ञानिक रहस्य
वैज्ञानिक अध्ययनों में यह पाया गया है कि शिवलिंग न्यूक्लियर रिएक्टर की भाँति रेडियो एक्टिव तथ्यों से परिपूर्ण होते हैं। इनमें समायी प्रलयंकारी ऊर्जा को शांत रखने के लिए शिवलिंग पर निरंतर जल चढ़ाया जाता है।
शिवलिंग पर चढ़ाये गए जल के बहने वाले मार्ग को इसीलिए लांघा नहीं जाता क्यूँकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रेडियो ऐक्टिव हो जाता है। अंत में यही जल नदियों के जल से मिलकर औषधि का रूप धारण कर लेता है।