Know The Story Of Colonel Sander
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जानिए कर्नल सेंडर्स के जज्बे की कहानी जिससे KFC को मिली पहचान | Know The Story Of Colonel Sander

हम सभी अपने जीवन में कई सारी सफलता की कहानियां पढ़ते हैं  और उनसे प्रभावित होकर अपने जीवन के कई सारे लक्ष्य बनाते हैं। हर व्यक्ति का संघर्ष असफलता से सफलता की ओर ही होता है और यह असफलता ही सफलता के लिए मार्ग बनाती है। आज हम आपको एक ऐसे ही इन्सान की कहानी बताने जा रहे हैं जो हम सभी के लिए हमेशा से ही प्रेरणा स्रोत रहेंगे। आइए जानते हैं जुनून और जज्बे की एक कहानी जिसने KFC जैसे बड़े नाम को बनाया।

62 वर्ष की उम्र और हौसला कुछ नया कर दिखाने का, तमाम कोशिशों के बावजूद भी जज्बा हार न मानने का तथा संतुष्टि न मिलने तक प्रयत्न करते रहने का। जी हां! हम बात कर रहे हैं कर्नल सैंडर्स की। वे KFC जैसे जाने-माने ब्रांड के निर्माता हैं।

सैंडर्स का पूरा नाम हालैंड डेविड सैंडर्स था। वे अमेरिका के हेनरीविले नामक स्थान पर 1890 में जन्मे थे। महज 6 वर्ष की उम्र में ही इनके पिता का देहांत हो गया था। इस घटना के बाद उनकी मां ने एक टमाटर सॉस पैक करने वाली कंपनी में काम करना शुरू कर दिया और सैंडर्स घर पर रहकर ही अपने दो भाई बहनों को संभालते थे। जब उनकी मां काम पर जाती थी तो सैंडर्स घर पर रहकर खाना बना दिया करते थे। उन्होंने 7 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया और 10 साल की उम्र में खेत में पर जाकर मजदूरी करने लगे। पारिवारिक स्थिति को देखते हुए उसकी मां ने दूसरी शादी कर ली और वहां से शिफ्ट होकर वे अपने पिता के घर ग्रीनवुड में रहने लगे, परंतु पिता के रवैए से परेशान होकर उन्होंने घर छोड़ दिया। 


17 वर्ष में रेलवे में फायरमैन का किया काम (Fireman work in railway in 17 years)


घर से जाने के बाद सेंडर्स ने एक घोड़ा गाड़ी पेंट करने का कार्य शुरू किया। बाद में वे दक्षिणी इंडियाना जाकर वहां फिर से खेत में मजदूरी का कार्य करने लगे। तब वे केवल 14 वर्ष के थे। इसके बाद वह 16 साल की उम्र में अमेरिकन आर्मी में भर्ती हो गए जो कि 1 साल बाद पूरी हो गई। आर्मी से आने के बाद उन्होंने अपने चाचा की मदद से रेलवे में नौकरी की। यहां वे रेलवे इंजन में कोयला डालने वाले फायरमैन की नौकरी करने लगे। 19 वर्ष की उम्र में शादी करने के बाद रेलवे में काम करने के साथ वे लाॅ की पढ़ाई कर रहे थे। कुछ समय बाद रेलवे की नौकरी चली गई और वे बेरोजगार हो गए।


सैंडर्स ने शुरू की फेरी कंपनी (Sanders started Ferry Company)


रेलवे की नौकरी छूटने के बाद उन्होंने लॉ की पढ़ाई जारी रखी। एक दिन कचहरी में एक व्यक्ति के साथ उनका विवाद हो गया, जिसके बाद उन्हें लॉ के अपने करियर से हाथ धोना पड़ा। तब वे अपनी मां के पास वापस आकर एक इंश्योरेंस एजेंट बन गए और उन्होंने पॉलिसी बेचने का काम कर लिया, परंतु इसका भी अंत निश्चित था। उनकी अपनी मर्जी से चलने वाले रवैए से परेशान होकर उन्हें इस नौकरी से भी निकाल दिया गया। उसके बाद उन्होंने कई सारे छोटे-बड़े कार्य किए।


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इसके साथ-साथ उन्होंने वहां के प्रसिद्ध नदी ओहायो में स्टीम बोट चलाने का कार्य आरंभ किया। आगे चलकर इस काम में उन्हें काफी कामयाबी हासिल हुई। तब उन्होंने इसे फेरी कंपनी का रूप दे दिया।इस कंपनी में उन्होंने एक सचिव के रूप में कार्य किया, परंतु उन्हें यह कार्य इतना पसंद नहीं था। इस वजह से उन्होंने अपनी कंपनी के शेयर बेच दिए। कंपनी के बेचे हुए शेयर से जितने भी पैसे मिले थे उनसे सैंडर्स ने एक नई फैक्ट्री खोली, जो कि एसिटिलीन लैंप को बनाने का काम करती थी। इस फैक्ट्री को भी बंद होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और सैंडर्स के सारे पैसे डूब गए।  इसके बाद वे केंटुकी नामक जगह पर चले आए और फिर से नए सिरे से अपना कार्य शुरू करने लगे।


KFC की शुरुआत (History Of KFC)  


1930 में 40 साल में सैंडर्स एक सर्विस स्टेशन पर कार्य करते थे। जहां वे एक छोटी सी जगह पर चिकन फ्राई बनाकर ग्राहकों को ऑर्डर पर पहुंचाते थे। धीरे-धीरे इस जगह ने ढाबे का रूप ले लिया। उनका यह फ्राई चिकन इतना मशहूर हुआ कि केंटुकी के गवर्नर ने उन्हें Kentucky colonel का नाम दे दिया। तभी से सैंडर्स के नाम के आगे कर्नल का प्रयोग किया जाना आरंभ हुआ। सन 1939 में इस ढाबे में आग लग गई और सब खाक हो गया।

इस पर भी सैंडर्स ने हार नहीं मानी और वह नॉर्थ कैरोलिना के एशविले में एक रेस्तरां चलाने लगे। इसमें केवल 140 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। यहां मोटेल चलाने के साथ-साथ वे एक नई रेसिपी बनाने की तैयारी कर रहे थे, जो कि चिकन फ्राई करने के लिए एक अलग प्रकार का मसाले का फार्मूला था। 1940 में सैंडल्स ने इसे पूरी तरह से आखिरी रूप दिया। 1941 में अमेरिका के द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने से टूरिज्म क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था और इस कारण सैंडर्स का कार्य भी बंद हो गया।

1948 में उनके पास बिल्कुल भी पैसे नहीं रहे गए थे। बस $105 बाकी थे। यह अमेरिकी के सरकार के द्वारा बेरोजगार बुजुर्गों को दिया जाने वाला पेंशन के रूप में सिक्योरिटी चेक था। यह सेंडर्स को इसलिए दिया जाता था क्योंकि वे 60 वर्ष से ऊपर हो चुके थे। अब उन्हें ना नौकरी मिल सकती थी और नहीं कोई नया कार्य प्रारंभ करने की क्षमता थी। इस पर भी उन्होंने अपने हौसले को हारने नहीं दिया और उनके द्वारा निर्माण की गई सीक्रेट रेसिपी की फ्रेंचाइजी शुरू कर दी।

इसके लिए उन्होंने किसी तरह पैसे जुटाकर विभिन्न होटलों में जाकर वहां लोगों का भरोसा जीतना आरंभ किया। परंतु यह कार्य भी कहां आसान था। इसके लिए अभी उन्हें और प्रयास करना था। लगभग 1008 जगहों ने उन्हें नकार दिया। नई सुबह तो होनी ही थी, इसलिए  उनकी इस फ्रेंचाइजी के लिए साल्टलेक शहर में एक बड़े रेस्टोरेंट व्यापारी पीट हरमन ने हां कर दी। पीट हरमन ने जैसे ही फ्राइड चिकन को अपने रेस्टोरेंट में शामिल किया उनकी बिक्री ज्यादा होने लगी। उन्होंने इस रेसिपी को KFC नाम दिया। 

उसके बाद देखते ही देखते दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की के साथ KFC एक ब्रांड बन गया और पूरी दुनिया के सभी रेस्टोरेंट्स में इसकी कई सारी चेन खुल गईं। आज पूरी दुनिया के लगभग 118 से भी अधिक देशों में KFC के 20,000 से भी ज्यादा आउटलेट हैं। भारत जैसे देश में इसके 350 से भी अधिक आउटलेट शामिल हैं। सन 1976 में  KFC के कारण कर्नल सैंडर्स दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों में दूसरे नंबर पर रहे। 

16 दिसंबर सन 1980 को कर्नल सैंडर्स दुनिया को छोड़ कर चले गए, परंतु आज भी KFC के हर प्रोडक्ट के विज्ञापन या फिर पोस्टर पर उनका चित्र विद्यमान है जो उनके किए गए कार्यों की सराहना हमेशा करता रहेगा।

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