इस सीढ़ी पर, यहीं जहाँ पर लगी हुई है काई, फिसल पड़ी थी मैं, फिर बाँहों में कितना शरमायी! जैसी पंक्तियों के साथ लिखी गयी यह खूबसूरत कविता को आधुनिक हिंदी के महान कवी धर्मवीर भर्ती ने अपने शब्द मोती रुपी माला को कविता के धागे में पिरोया है। आइये पढ़ते हैं इस कविता को। और पढ़ें