Sumitranandan pant

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याद / सुमित्रानंदन पंत


इस कविता में, कवि ने अपने विरह से भरे हृदय की भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। नव असाढ़ की सुंदर संध्या में, उन्होंने आत्म-विचार और अपने मन के साथी के साथ बिताए गए लम्हों का संवर्धन किया है। वह विरह से पीड़ित एकाकी की भावनाएं, मेघों की गरज, और आसमान में घिरे हुए केसरी दुकूल का चित्रण करते हैं। और पढ़ें

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छोड़ द्रुमों की मृदु छाया - सुमित्रानंदन पंत


कवि सुमित्रानंदन पंत ने यह कविता अवश्य ही कहीं सुदूर हिमालय की तलहटी में बैठकर संजोयी होगी। और पढ़ें

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आ: धरती कितना देती है - सुमित्रानंदन पंत


छुटपन में या बालपन में हम सब कुछ न कुछ सोचते रहते हैं, हमारा मन मस्तिष्क कई योजनाओं को बनता है और भूल जाता है, ऐसे ही कवि सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कलम से उकेरी है यह बालमन कि कविता जिसमे कवि पैसों को बोते हैं। सार यह है कि जो काम करते हैं वैसा ही फल मिलता है और पढ़ें

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सुमित्रानंदन पंत की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक ग्राम्या के बारे में


ग्रामीण जीवन को दर्शाने वाली पंत की यह रचना हिंदी भाषा की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। ग्राम्या पाठकों को ग्रामीणों के प्रति बौद्धिक सहानुभूति मिल सकती है। "भारत गांवों में बसता है" यह महात्मा जी का कथन है लेकिन इसको कविता के माध्यम से मूर्त रूप सुमित्रानंदन पंत ने दिया। और पढ़ें