This bridge has not been inaugurated since 80 years
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लगभग 80 साल से बने हुए इस पुल का आज तक उद्घाटन नहीं हो पाया है

"हावड़ा ब्रिज" नाम से मशहूर कोलकाता का "रवींद्र सेतु" एक कैंटीलीवर सेतु है जो मात्र 4 खंभों के सपोर्ट द्वारा निर्मित किया गया है 2 खंबे हुगली के इस तरफ और 2 खंबे हुगली के उस तरफ अवस्थित हैं। इस पुल पर सहारे के लिए कोई रस्सी या तार का उपयोग नहीं किया गया है। दिन -रात लगभग 1,50,000 भारी वाहन और लाखों की संख्या में  (लगभग 40,00,000) की पैदल भीड़ इस ब्रिज से होकर गुजरती है लेकिन 80 वर्षों के बावजूद इस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इस पुल के निर्माण की कल्पना अंग्रेज अधिकारी ने की थी तब वे एक ऐसे पुल का निर्माण करना चाहते थे जिससे नीचे नदी का जल मार्ग अवरुद्ध न हो सके जिससे पुल के नीचे खंबे का निर्माण नहीं किया गया।


बीसीसी की रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटिश सरकार द्वारा हुगली नदी पर एक तैरते पुल के निर्माण की योजना बनाई गई जहाजों की आवाजाही और व्यापार में रुकावट ना हो पाए जिसके लिए ब्रिटिश सरकार ने हुगली नदी के दोनों किनारों पर एक तैरते हुए पुल निर्माण का प्रस्ताव 1871 में "हावड़ा ब्रिज एक्ट" नाम से पारित किया।


बंगाल की खाड़ी से उठने वाले तूफान को रोजाना झेलने वाला हावड़ा पुल आज दुनिया में अपनी तरह का छठवां पुल है हुगली पर बढ़ते यातायात को मध्य नजर रखते हुए 1855 -56 में एक समिति का गठन किया गया लेकिन 1859-60 में इस योजना पर विचार कर इसे स्थगित कर दिया गया इसके बाद हुगली पर पुल के प्रबंध के लिए एक ट्रस्ट नव नियुक्त किया गया। वर्ष 1870 में कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट की स्थापना की गई और 1871 में तत्कालीन सरकार ने हावड़ा ब्रिज अधिनियम पारित कर दिया।


25 मिलियन की लागत के साथ निर्मित हावड़ा ब्रिज पर पीपों का प्रयोग किया गया यह पीप इंग्लैंड से आर्डर किए गए थे। 20 मार्च 1874 में आये विनाशकारी तूफान से यह पुल व्यापक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया इजेरिया नामक एक्सट्रीमर पुल से टकरा गया और 3 पीप पानी में डूब गए इस प्रकार पुल 200 फीट के करीब नष्ट हो गया और पुनः इसका निर्माण किया गया।


नट बोल्ट की जगह धातु से बनी कीलों का हुआ है उपयोग


हावड़ा ब्रिज को पूर्ण रूप से बनकर तैयार होने में 4 वर्ष लग गए हावड़ा ब्रिज का निर्माण उस समय हुआ जब विश्व भर में मानव सामग्रियों की आपूर्ति नहीं हो पा रही थी शहर के भीतर लागू ब्लैक आउट के बावजूद भी 24 घंटे काम चलता था। हावड़ा के मुख्य टावर का निर्माण प्रत्येक 6.25 मीटर वर्ग वाले 21 सॉफ्ट के साथ 55.31×24.8 मीटर डायमेंशन में हुवा है। पूरे ब्रिज पर नट बोल्ट की जगह धातु की बनी कीलों  का इस्तेमाल किया गया है जो इसकी स्टील की प्लेटों को जोड़ने का कार्य करती है। 26,500 टन स्टील के इस्तेमाल द्वारा निर्मित इस पुल को बनाने में 23,500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी। वर्ष 2011 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक तंबाकू थूकने की वजह से ब्रिज के पायो की मोटाई कम हो रही है 20,00000 रुपए का खर्चा कर भारत सरकार ने पुल को बचाने के लिए स्टील के पायों के नीचे फाइबर ग्लास से ढक कर इसे सुरक्षा प्रदान की है।


हावड़ा ब्रिज 19 वी सदी का तीसरा सबसे लंबा पुल

  

280 फीट ऊंचा यह ब्रिज दो पायों पर टिका है जो ब्रिज को सपोर्ट प्रदान करने का कार्य करते हैं। हुगली नदी के दोनों किनारों पर स्थित इस ब्रिज के दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फिट है। वर्ष 1936 में इस ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू किया गया था जो 1942 को जाकर पूर्ण हुआ। 3 फरवरी 1943 से इसे देश को जनता की आवाजाही के लिए पूर्ण रूप से खोल दिया गया इस प्रकार हावड़ा ब्रिज उस समय दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज बना था।


ब्रिज का उद्घाटन न हो पाने का कारण


जब हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य पूरा हुआ तो इसका नाम "न्यू हावड़ा ब्रिज" रख दिया गया 14 जून 1965 को न्यू हावड़ा ब्रिज का नाम बदलकर कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर के नाम पर "रवींद्र सेतु" रखा गया लेकिन वर्तमान समय में इसे लोग हावड़ा ब्रिज के नाम से ही अधिक जानते हैं।

 

हावड़ा ब्रिज के औपचारिक उद्घाटन न हो पाने का कारण द्वितीय विश्वयुद्ध को माना जाता है जब हावड़ा ब्रिज पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो चुका था तो विश्व भर में द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर चल रहा था जिसके कारण इस ब्रिज के औपचारिक उद्घाटन पर ज्यादा धूमधाम ना करने की घोषणा की गई।

 

चूंकि वर्ष 1942 में हावड़ा ब्रिज बनकर तैयार हो चुका था लेकिन ऐसा माना जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के इस दौर में दिसंबर 1942 को जापान द्वारा एक बम इस ब्रिज से कुछ ही दूरी पर गिराया गया था हालांकि ब्रिज पूरी तरह से सुरक्षित था।

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