Maine jeevan dekha,jeevan ka gaan kiya by Harivansh Rai Bachchan
कविता

मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया- हरिवंशराय बच्चन

मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया।


वह पट ले आई, बोली, देखो एक तरु़,

जीवन-उषा की लाल किरण, बहता पानी,

उगता सरोवर, खर चोंच दबा उड़ता पंछी,

छूता अंबर को धरती का अंचल धानी;

दूसरी तरफ़ है मृत्‍यु-मरुस्‍थल की संध्‍या

में राख धूएँ में धँसा कंकाल पड़ा।

मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया।


ऊषा की कीरणों से कंचन की वृष्टि हुई,

बहते पानी में मदिरा की लहरें आई,

उगते तरुवर की छाया में प्रमी लेटे,

विहगावलि ने नभ में मुखरित की शहनाई,

अंबर धरती के ऊपर बन आशीष झुका

मानव ने अपने सुख-दु:ख में, संघर्षों में;

अपनी मिट्टी की काया पर अभिमान किया।

मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया।


मैं कभी, कहीं पर सफ़र ख्‍़ात्‍म कर देने को

तैयार सदा था, इसमें भी थी क्‍या मुश्किल;

चलना ही जिका काम रहा हो दुनिया में

हर एक क़दम के ऊपर है उसकी मंज़‍िल;

जो कल मर काम उठाता है वह पछताए,

कल अगर नहीं फिर उसकी क़‍िस्‍मत में आता;

मैंने कल पर कब आज भला बलिदान किया।

मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया।


कालो, काले केशों में काला कमल सजा,

काली सारी पहने चुपके-चुपके आई,

मैं उज्‍ज्‍वल-मुख, उजले वस्‍त्रों में बैठा था

सुस्‍ताने को, पथ पर थी उजियाली छाई,

'तुम कौन? मौत? मैं जीने की ही जोग-जुगत

में लगा रहा।' बोली, 'मत घबरा, स्‍वागत का

मेरे, तूने सबसे अच्‍छा सामान किया।'

मैंने जीवन देखा, जीवन का गान किया।


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