20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को लिखे गए एक पत्र से यह बात पता चलती है कि शहीद-ए-आजम (भगत सिंह) का मानना था कि वे आजादी के सिपाही हैं और उन्हें फांसी देने की बजाय सैनिकों जैसी शहादत देते हुए उनके सीने पर गोली मारी जाए।
कौन थे भगत सिंह?
Bhagat Singh शहीद-ए- आजम के नाम से विख्यात भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और शक्तिशाली क्रांतिकारी थे। ब्रिटिश सरकार का मुकाबला करने और आजादी के लिए उनके किससे अभूतपूर्व है ।स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उन्होंने देश में अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया और अंग्रेजी शासन के विरोध को बुलंदी प्रदान की।
जन्म और परिवेश- भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को एक सिख्ह परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।लाहौर नेशनल कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की। 12th की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर पर उनकी शादी की बात चलने लगी तो वे घर छोड़कर भाग गए ।उनका मानना था कि आजादी ही सिर्फ उनकी दुल्हन होगी।
13 अप्रैल 1919 मैं जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ जिसने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि वे लाहौर के नेशनल कॉलेज से पढ़ाई छोड़ कर भारत की आजादी के लिए नोजवान भारत सभा की स्थापना करने लगे।
दूसरी घटना -काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल सहित 4अन्य क्रांतिकारियों को फांसी की सजा और 16 साल की कारावास की सजा ने भगत सिंह को इतना बेचैन किया कि वे चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी से जुड़ गए। इन संगठनों का उद्देश्य ऐसे युवा तैयार करना था जो सेवा, त्याग और पीड़ा को झेल सकें।
क्रांतिकारी गतिविधियां
सांडर्स की हत्या
1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए देश में भयानक प्रदर्शन चल रहे थे प्रदर्शन में भाग लेने वालों पर अंग्रेजी सरकार ने लाठीचार्ज कर दी और इस लाठीचार्ज से आहत होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। भगत सिंह से रहा न गया इस घटना का बदला लेने के लिए उन्होंने पुलिस सुप्रिडेंट को मारने की योजना बनाई। राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जे.पी सांडर्स को 32 mm सेमी ऑटोमेटिकल पिस्टल कल्ट से मौत के घाट उतार दिया। जिसमें क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी सहायता की।
सेण्ट्रल असेम्बली में बम फेंकना
वामपंथी विचारधारा के पक्षधर कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों से भगत सिंह काफी प्रभावित थे। वे मार्क्सवादी विचारधारा को मानने वालों में से एक थे ।उन्हें पूंजीपतियों के द्वारा मजदूरों का शोषण करने की नीति पसंद नहीं आती थी। तत्कालीन समय में अंग्रेजों द्वारा मजदूर वर्ग का शोषण किया जाता था उन्होंने निर्णय लिया कि वे मजदूरों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे और ब्रिटिश संसद में मजदूर विरोधी नीतियों को पारित नहीं होने देंगे। वे चाहते थे कि अंग्रेजों को पता चलना चाहिए कि अब हिंदुस्तान जाग चुका है और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है और ऐसा करने के लिए उन्होंने दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई।
इसे भी पढ़ें : भगतसिंह का सुखदेव के नाम पत्र- Bhagat Singh Letter to Sukhdev
सांडर्स की हत्या के बाद नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार भवन में 8 अप्रैल 1929 में भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर बम फेंका। बम फेंकने के बाद उन्होंने-
"इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद" के नारे लगाए।और अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
जेल के दिन- भगत सिंह लगभग 2साल तक जेल में रहे। जेल में भगत सिंह और उनके साथी 64 दिन तक भूख हड़ताल पर रहे जिसमें उनके साथी जितेंद्र नाथ दास की मृत्यु हो गई। जेल में रहने के दौरान वह अपनी डायरी में लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचारों को व्यक्त करते थे इस डायरी को उनके विचारों का दर्पण कहा जाता है अपने लेख में उन्होंने बताया कि मजदूरों का शोषण करने वाला हर इंसान उनका शत्रु है फिर वह भारतीय ही क्यों ना हो।
फांसी- 7 अक्टूबर 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठ का एक निर्णय लिया गया जिसमें भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को सजा सुनाई गई । और लाहौर में धारा 144 लगा दी गई । फांसी पर जाने से पूर्व वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे अपनी अंतिम इच्छा में उन्होंने लेनिन की जीवनी को पूरा पढ़ने का वक्त मांगा। फांसी पर चढ़ने से पहले उनकी यह इच्छा थी कि अंग्रेजी सरकार फांसी के बदले उनके सीने में गोली मारे क्योंकि वह खुद को सैनिक की तरह वीरगति को प्राप्त होना चाहते थे लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस इच्छा को पूरा नहीं किया। फांसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती में गा रहे थे-
"मेरा रंग दे बसंती चोला ,मेरा रंग दे।
मेरा रंग दे बसंती चोला ,माय रंग दे..."
फाँसी पर चढ़ाने के बाद अंग्रेजी सरकार ने इन तीनों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।उनकी फांसी से आंदोलन और न भड़क जाए इसके डर से अंग्रेज उनके शरीर के टुकड़ों को फिरोजपुर ले गए।और वहाँ उन्हें जलाने लगे। गांव के लोगों आग जली देखी तो वे उसके करीब आए । इससे डरकर अंग्रेजों ने अधजली लाश के टुकड़ों को उठाकर सतलुज नदी में फेंक दिया और वहां से भाग गये। गांव वालों ने इन टुकड़ों को समेटा, और विधिवत ढंग से उनका दाह संस्कार किया।
इस प्रकार से भारत के तीन युवा क्रांतिकारी शेरों ने आजादी के लिए अपना बलिदान दिया। आजाद भारत हमेशा उनका ऋणी रहेगा। भारत माता के इन तीन क्रांतिकारी सपूतों को हमारा शत शत नमन।