आजकल के समय में सोशल मीडिया का इतना अधिक उपयोग हो रहा है कि इसे सोशल मीडिया और स्मार्टफोन्स का जमाना कहा जा रहा है। बड़े बूढ़े ही नहीं बल्कि छोटे-छोटे बच्चों को भी अब पढ़ाई से लेकर खेलने तक के लिए स्मार्टफोन्स चाहिए होता है और बड़े होते-होते वे सोशल मीडिया पर इतने एक्टिव हो जाते हैं कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगता है। कहा जाता है कि आज का सोशल मीडिया नकारात्मकता और इनसिक्योरिटी से भरा हुआ है परंतु फिर भी हर इंसान सुबह आंखे खोलने से लेकर रात को सोने से पहले तक सोशल मीडिया पर व्यस्त रहता है। कई तो ऐसे होते हैं कि उन्हें अपनी कोई फिक्र ही नहीं रहती। आजकल की बात करें तो जब से कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन हुआ है तब से सोशल मीडिया का क्रेज़ और इसका इस्तेमाल कई गुना बढ़ गया है। इसके इस तरह अनगिनत इस्तेमाल से इंसानी शरीर पर कई तरह से असर पड़ सकता है और सबसे अधिक मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
आइये सबसे पहले उन बातों के बारे में जानकारी लेते हैं जिनसे किसी भी व्यक्ति के तनाव का स्तर बढ़ जाता है:
हाइलाइटेड होना
हाइलाइटेड का अर्थ है चमकना। यानी सोशल मीडिया पर मशहूर होना। कई सारे लोग इस बात को लेकर काफी असुरक्षित महसूस करने लगते हैं कि वे दूसरे लोगों से कम हाइलाइटेड हैं। उन्हें यह लगने लगता है कि क्यों वे दूसरों से कम हाइलाइटेड हैं और इसी कारण से वह अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद दोस्तों, सगे संबंधियों और यहां तक कि अजनबी लोगों से भी स्वयं की तुलना करने लगते हैं और स्वयं को कमजोर समझने लगते हैं। इसी कारणवश मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट का क्रेज़
सोशल मीडिया मानसिक तनाव का कारण एक और प्रकार से हो सकता है। यहां पर लोग लाइक और कमेंट को लेकर भी खूब चर्चा करते हैं यह माना जाता है कि जितने ज्यादा लाइक और कमेंट होंगे उतना ही वह व्यक्ति मशहूर होगा और लोग यह मान बैठते हैं कि सोशल मीडिया पर मिलने वाले लाइक और कमेंट ही यह बताते हैं कि उनकी जिंदगी में क्या उचित है और क्या अनुचित। इसके अलावा उनकी सोच को उनके पोस्ट और शेयर्स द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसके चलते मानसिक दबाव उन पर हावी होने लगता है।
एफओएमओ (फोमो)
फोमो का अर्थ है फीयर ऑफ़ मिसिंग आउट अर्थात इसमें लोगों को पीछे रह जाने का बहुत अधिक डर रहता है। वह हमेशा मिस हो जाने को लेकर सोचते हैं। इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि कहीं उनके द्वारा कोई ऐसी ट्रेंडिंग चीज मिस ना हो गई हो जो कि उनको पता नहीं है और उनके जानने वालों को पता है। इसका मेंटल हेल्थ पर बहुत ही बुरा असर देखने को मिलता है
ऑनलाइन हैरेसमेंट:
यह सोशल मीडिया का एक अन्य प्रकार से बुरा प्रभाव है इसमें लोग सोशल मीडिया पर हमेशा किसी और की डार्कसाइड को लेकर अधिक चर्चाएं करते हैं ऐसे में वे व्यक्ति जिनकी चर्चा हो रही होती है उनका तनाव अत्यधिक बढ़ सकता है और वे स्वयं को मारने जैसे घातक कदम भी उठा सकते हैं
बचने के उपाय:
सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव से बचने के लिए हमें समस्याओं को जानना होता है और उसके साथ-साथ यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि इन परेशानियों को कैसे सुलझाया जा सकता है इसके लिए कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं:-
लोग सोशल मीडिया को अपने जीवन का हिस्सा न मानकर उसे ही जीवन के समान देखने लगे हैं अर्थात सोशल मीडिया पर जो कुछ भी लोग कह रहे हैं या बातें कर रहे हैं उसे अपना लक्ष्य मान लेते हैं। इससे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसीलिए यह बताया जाता है कि ऐसी बातों को एक सुझाव के तौर पर लेना चाहिए न कि जीवन के लक्ष्य के तौर पर।
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कई चीजों के लिए जागरूक होना भी अत्यंत जरूरी है इसके लिए सोशल मीडिया के बारे में आपको पूरी तरह से जानकारी होनी आवश्यक है।
जैसे व्यक्तियों को अपनी शारीरिक सेहत को स्वस्थ रखने के लिए के लिए पोषक तत्वों से भरपूर एक अच्छी और बैलेंस डाइट की जरूरत होती है, वैसे ही मानसिक सेहत के लिए भी अच्छी डाइट मतलब अच्छी बातों की जरूरत होती है।
दिमाग में चल रही बातों का स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है इसके लिए सोशल मीडिया पर किसी भी प्रकार की अनावश्यक चीजों के बारे में न सोच कर सिर्फ उन्हीं चीजों को फॉलो करना चाहिए जिनकी आपको जरूरत है। बाकी की बेकार चीजों पर ध्यान ना देना ही मेंटल हेल्थ के लिए उचित इलाज है।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया का प्रभाव हमेशा ही मानसिक सेहत के लिए बुरा नहीं बल्कि कभी-कभी यह अच्छा भी हो सकता है। जैसे- यह कभी आपको दुखी कर देता है, तो कभी आपकी या किसी दुखी व्यक्ति की हंसी के पीछे का कारण भी सोशल मीडिया होता है। यह आपको रुलाता है तो वहीं हँसने पर भी मजबूर कर देता है।