वह सुनो जो ना कहा गया हो |  Story of Jane Master
स्टोरीज

वह सुनो जो ना कहा गया हो | Story of Jane Master

जेन कहानियाँ दुनिया भर में प्रचलित प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। दरअसल जेन जापान में प्रचलित बौद्ध का एक रूप है। इन कहानियों को लिखने की एक अलग ही शैली होती है। जिसमें एक जेन उस्ताद होते हैं जो बड़ी रूचि पूर्ण ढंग से और दिलचस्प शब्दों में शिक्षा दे जाते हैं। वे जीवन का ऐसा पाठ पढ़ाते हैं जो किसी भी व्यक्ति को अच्छा इंसान बनने में मदद करती है और जीवन को सुख पूर्वक जीने का हौसला दिलाती है। 

यह कहानियाँ मनुष्य की जागृति पर विशेष जोर डालती हैं। इन के माध्यम से जीवन का रहस्य और उसका सही मतलब ढूंढने का मात्र प्रयास ही नहीं किया जाता बल्कि इस विधि के रूप में उसे खोजा भी जाता है, यहां तक की मनुष्य के विचारों में बुराई के धूल को दरकिनार करते हुए यह कहानियां अच्छाई का सही अर्थ समझाती हैं। जेन को जो भी व्यक्ति मानता है उन्हें यह सिखाया जाता है कि वे सत्य को कैसे जान सकते हैं, कैसे वह अपने जीवन में घटित होने वाले घटनाओं को सत्य के साथ तोल सकते हैं। अपनी उम्मीदों को, अपने विचारों को और यहां तक कि अपने भरोसे की कई परतों को भी हटा कर उसके अंदर छुपे सत्य का रहस्य जान सकते हैं।


ऐसी जेन कहानियों से आप सभी परिचित होंगे। आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी को एक ऐसी कहानी से रुबरु करने जा रहे हैं, जो हमें सीख देती है कि एक लीडर की तथा एक राजा की क्या विशेषताएं होनी चाहिए? उसके और उसकी प्रजा के बीच में संबंधों का कैसा रूप होना चाहिए और क्या चीजें हैं जिनसे एक राजा अपने राज्य को और अपने लीडरशिप को बेहतर बना सकता है? आइए पढ़ते हैं इस कहानी को जिसका शीर्षक है-

      

'वह सुनो जो ना कहा गया हो'


बहुत समय पहले की बात है चीन के एक राजा चाहते थे कि उसका बेटा एक अच्छा शासक बने। अपने बेटे को अच्छे शासक बनाने के मकसद से उन्होंने उसे एक जेन मास्टर के पास भेजा। 

जेन मास्टर ने उस राजकुमार को कुछ ही दिन अपने साथ रखा और फिर उसे जंगल में 1 साल के लिए अकेला रहने को भेज दिया। 

जब 1 साल बाद राजकुमार वापस लौटे तो जेन मास्टर ने पूछा, "बताओ तुमने जंगल में क्या सुना?"

राजकुमार ने अपने अनुभव से जवाब दिया कि- "मैंने वहां कोयल की कूक सुनी, नदियों की कल-कल सुनी, पत्तियों की सरसराहट सुनी, मधुमक्खियों की गजल सुनी और झींगुरों का शोर सुना तथा हवा की धुन सुनी..."  इसी तरह से वे अपने 1 साल के अनुभव जैन मास्टर को सुनाता चला गया।


जब उस राजकुमार ने अपनी बात को पूरा करके सांस ली तो तब जेन मास्टर बोले- "अच्छा है! अब तुम एक बार फिर जंगल जाओ और जब तक तुम्हें कुछ नई आवाज नहीं सुनाई दे तब तक वापस मत लौटना।"

अब फिर राजकुमार 1 साल जंगल में बिता कर अपने राज्य वापस लौटना चाहता था, परंतु मास्टर जी की बात को वह टाल नहीं सकता था, इसीलिए बेमन से ही वह जंगल की ओर बढ़ता चला गया।

काफी दिन गुजरने पर भी राजकुमार को कोई भी नई आवाज नहीं सुनाई दी। वह इस से चिंतित हो उठा और अपनी परेशानी में उसने यह निर्णय लिया कि वह अब हर आवाज को बड़े ही ध्यान से सुनेगा। ताकि उसे कुछ तो नई आवाज सुनाई दे।

 

इसके बाद वह आने वाली सभी आवाजों को ध्यान से सुनने लगा, परंतु फिर भी उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हुई। तत्पश्चात एक सुबह उसे कुछ अनजानी सी आवाजें सुनाई देने लगी। हल्की-हल्की आवाज में। इस घटना के कुछ ही दिनों बाद  राजकुमार जेन मास्टर के पास वापस लौट आया।

मास्टर के पूछने पर उसने बताया कि पहले तो मुझे वही ध्वनियाँ सुनाई दी जो पहले से ही सुनाई देती आ रही थीं, लेकिन एक दिन जब मैंने बहुत ध्यान से इन ध्वनियों को सुना तो मुझे वह सुनाई देने लगा जो मैंने कभी पहले नहीं सुना था..... मुझे कलियों के खिलने की आवाज सुनाई देने लगी, मुझे धरती पर पड़ती सूरज की किरणों की आवाज सुनाई दी,  तितलियों के गीत और घास द्वारा सुबह की ओंस पीने की  ध्वनियाँ मुझे सुनाई देने लगीं...... 


इसे भी पढ़ें: कमला हैरिस अमेरिका की प्रथम महिला उपराष्ट्रपति


राजकुमार का यह जवाब सुनते ही जेन मास्टर खुश हो गए और वह मुस्कुरा कर बोले- "अनसुने को सुनने की क्षमता होना एक अच्छे राजा की महत्वपूर्ण निशानी है, क्योंकि जब कोई शासक अपने लोगों के दिलों की बात सुनना सीख लेता है, बिना उसके बोले, उनकी भावनाओं को समझ लेता है, जो दर्द बयां न किया हो उसे समझ लेता है, उन लोगों की अनकही शिकायतों को सुन लेता है, केवल वही राजा अपनी प्रजा का विश्वास जीत सकता है। उनके साथ कुछ गलत होने पर उसे समझ सकता है तथा अपने नागरिकों की वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।


यह कहानी हमें सीख देती है कि यदि हमें अपने विषय का या अपने क्षेत्र का लीडर बनना है, तो हमें वह सब सुनना पड़ेगा जो कि किसी भी व्यक्ति द्वारा नहीं कहा गया। यानी कि हमें बहुत ही सतर्कता से अपने कार्य को करना चाहिए और सतर्क रहकर, दूसरों की भावनाओं उनकी जरूरतों का ख्याल रखकर उनकी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए। तभी हम एक सच्चे लीडर और एक सच्चे राजा की तरह प्रजा के बीच स्वयं को स्थापित कर सकते हैं। इससे लीडर और व्यक्तियों के बीच के संबंध भी मधुर होते हैं और विश्वास और अधिक दृढ़ होता है।


Trending Products (ट्रेंडिंग प्रोडक्ट्स)