Pinjar by Amrita Pritam
पुस्तक समीक्षा

आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद का सामाजिक तानाबाना है "पिंजर" | Pinjar by Amrita Pritam

अमृता प्रीतम द्वारा रचित पिंजर भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय से पहले की घटनाओं पर रचित उपन्यास है जिसमें उस समय के समाज की कुछ घटित घटनाएं कुछ विश्वसनीयता पर आधारित घटनाओं का वर्णन और कुछ काल्पनिक घटनाओं को इस उपन्यास में उकेरा गया है जिसमे  समाज में स्त्री की दशा का वर्णन किया गया है।

पिंजर उपन्यास में मुख्यतः दो पात्र हैं पहला पात्र पूरो है जो कि हिंदू परिवार से है और 14 वर्ष की लड़की है दूसरा मुख्य पात्र है रशीद जो कि 22 वर्ष का एक मुस्लिम नौजवान है। इन दोनों के परिवारों में पुरानी दुश्मनी है जो कि इन के दादा परदादा के समय से चली आ रही है। इस दुश्मनी का मार किस पर पड़ी यह इस उपन्यास में दर्शाया गया है

पूरो इस दुश्मनी से बेखबर अपने 14 वर्ष में प्रवेश कर चुकी है जिसमें उसकी सगाई पास के गांव के नौजवान रामचंद से होने वाली है वहीं रामचंद की बहन से पूरो के  छोटे भाई की शादी तय हो चुकी है, इस बात से पूरो बहुत खुश है एक तो यह समय  वह भी है  जब पूरो यौवन की तरफ आकर्षित होने लगी है ।

एक दिन की बात है जब पूरो अपनी  छोटी बहन के साथ बाजार तक घूमने गई इतने में राशिद आकर पूरो का अपरहण कर उसे अपनी कैद में कर देता है वह सिर्फ पूरो को रात का खाना देने आता है उसने पूरो को इस बीच  कभी नहीं छुआ। 14 वें दिन तक पूरो ने 1 दिन भी खाने को हाथ नहीं लगाया 15 वें दिन राशिद ने पूरो के सामने शादी का जोड़ा लेकर रख दिया और कहा कि कल मौलवी हमारा निकाह पड़ेगा।

यह सुनकर पूरो आश्चर्यचकित हो जाती है और राशिद से कहती है!  तुम्हें खुदा का वास्ता मुझे मेरे घर जाने दो, मैं हमेशा तुम्हारे लिए दुआ करूंगी।

राशिद पूरो से कहता है कि तुझे तेरे घर में कोई भी नहीं अपनाएगा क्योंकि एक तो तू अगवा की गई है,दूसरा तुझे 15 दिन तक एक मुस्लिम घर में कैद किया गया है। 

पूरो राशिद से  कहती है कि तुम्हें खुदा का वास्ता तुम मुझे बताओ कि तुमने मुझे कैद क्यों किया? राशिद उसे जवाब देता है और कहता है कि 'तुझे नहीं पता लेकिन हमारी खानदानी दुश्मनी जो कि तेरे दादा परदादा के जमाने से चली आ रही है तेरे परदादा ने हम पर इतना ब्याज लगाया कि हम उनका कर चुका न पाए और उन्होंने हमें घर से बेघर कर दिया। हमारे घर की औरतों को बुरा भला कहा और यहां तक कि तेरे दादा के भाई के बड़े बेटे ने मेरी बुआ को अगवा कर दिया और उनकी जान ले ली। उस दिन से हमारे घर में तुम्हारे खानदान के प्रति नफरत है।

मेरे दादा ने मेरे चाचा और अब्बू जान को कुरान की कसमें उठाई थी कि तुम्हारे खानदान की खुशियों को भी हम छीन देंगे यही कसमे मुझसे भी उठाई गई जिस कारण से मुझे तुझे अगवा करना पड़ा

पूरो  फिर भी जिद करती है और कहती है मुझे मेरे परिवार वालों के पास जाना है मैं यहां और नहीं रह सकती। राशिद यह सुनकर कहता है सच कहूं पूरो   मुझसे तेरी यह हालत नहीं देखी जाती जब मैंने पहली बार तुझे देखा था तो मुझे पहली नजर में ही तुझसे इश्क हो गया था, पर मुझे पता है कि तेरे घर वाले तुझे कभी नहीं अपनाएंगे इतना कहकर राशिद वहां से चला गया।

राशिद के द्वारा लाया हुआ खाना पूरो ने उस दिन खा दिया था ताकि उसके शरीर में जान रह सके और वहां से भाग निकल सके और अपने परिवार वालों को मिल सके। पूरो ने  पूरी जद्दोजहद के साथ राशिद की कैद से बाहर निकलने में कामयाब हो गई।

जब वह अपने गांव पहुंचती है तो उसके घर वाले उसको घर की दहलीज पार करने से मना कर देते हैं और कहते हैं कि पूरो दहलीज पार मत करना अगर तू हमारे घर पर आएगी तो हमारा परिवार खाक हो जाएगा। पूरो अपनी मां की तरफ देखती है और कहती है मां ! मुझे आने दो  पूरो की मां  अपनी ममता भरी नजरों से उसको देखती और कहती पूरो यहां से चली जा तेरे आने से मेरा परिवार का नामो निशान मिट जाएगा। पूरो यह सुनते ही कहती है कि 'मुझे तुम अपने ही हाथों से मार डालो मैं वापस नहीं जाना चाहती' पूरो के घर वाले कहते हैं कि अगर तू यहां रुकी तो हमें जाति बिरादरी से निकाल दिया जाएगा और हमारी जाति भी अपवित्र हो जाएगी।

इतना सुनते पूरो वहां से चली जाती है और मरने की ठान लेती है। जैसे ही वह मौत को गले लगाने  जाती है उसी समय राशिद उसे बचा लेता है और अपने साथ गांव ले जाता है।

अगले दिन पूरो का निकाह राशिद के साथ पढ़ा दिया जाता है  अब पूरो का नाम पूरो से बदलकर  हमीदा कर दिया जाता है।

पूरो निकाह की रात सोचती है कि वह अब पूरो रह गई और ना ही हामिदा  उसका अस्तित्व इस दुनिया में कुछ भी नहीं, यह पूरी दुनिया उसे पिंजर लगती है।

राशिद पूरो पर अपनी जबरदस्ती का ठप्पा लगा देता है जिसे वह मोहब्बत का नाम देता है, 9 महीने बाद पूरो और राशिद  1 पुत्र के माता पिता बन जाते हैं, राशिद पुत्र प्राप्ति के फल से बहुत खुश होता है और साथ में यह भी सोचता है कि उसने पूरो पर विजय प्राप्त कर ली है।  वही पूरो अभी प्रसव पीड़ा से होश में आती है और अपने शरीर से जुड़े सफेद और नरम बालक को देखते हुए सोचती है  कि यह कीड़ा भी अपने बाप की तरह है जो कि जबरदस्ती मेरी नसों से दूध को खींच रहा है और मुझे पीड़ा पहुंचा रहा है।


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पूरो  अब ऐसी हो गई थी जैसे बिना आत्मा के शरीर बस वह  चूल्हा चौका करती और अपने जीवन की दुर्दशा पर रोती।

एक दिन राशिद अपने बेटे और पूरो को साथ लेकर दूसरे गांव में रहने चला गया इस गांव में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग निवास करते थे परंतु एक दूसरे का दिया हुआ कुछ भी नहीं खाते थे।

उसी गांव में एक लड़की थी जिसकी मां की मृत्यु हो चुकी थी और उस लड़की के पिता उस लड़की को गांव में छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए शहर चले गए थे वह लड़की अपने चाचा चाची के साथ रहती थी। उसकी चाची उसे दिन-रात ताने देती मारती और घर का काम कराती। 

पूरो उस लड़की के लिए बहुत संवेदनशील थी क्योंकि वह उस लड़की में अपना बचपन देखा करती थी वह उस लड़की की हर संभव मदद करती उसे नए नए कपड़े देती और उसका खासा ख्याल रखती।

यह सब पूरो अपनी खुशी से करती पर पूरो का ध्यान एक दूसरी जगह भी खिंचा चला जाता था वह रामचंद के बारे में भी सोचा करती थी।

एक दिन की बात है कि पड़ोस की बुढ़िया ने पूरो से पास के गांव में  साथ चलने को कहा पुरो ने साथ चलने के लिए हामी भर दी। जब वह उस गांव में गई तो उसे पता चला कि यह रामचंद का गांव है वह इस आश में थी कि  उसे रामचंद दिख जाएगा उसने जब पता किया तो उसे रामचंद दिखा भी लेकिन उसने रामचंद से एक लफ्ज़ भी नहीं बोला और वापस अपने घर आ गई।

दिन बीतते गए फिर उस गांव में एक घटना घटी एक पागल लड़की उस गांव में भूले भटकते हुए आ गई वह उसी गांव में रहने लगी कुछ समय बाद उस पागल लड़की का पेट आगे आने लगा। गांव में बातें चलने लगी की कितनी निर्लज्ज लड़की है जब पूरो को यह बात पता चली तो वह मन ही मन सोचने लगी कि कितनी हैवानियत भरी हो गई है यह दुनिया कि जिन्होंने इस मासूम सी लड़की को भी अपना शिकार बना दिया कब तक मासूम लड़कियां इन मर्दों की हवस का निशाना बनती रहेंगी और बेकसूर होने के बावजूद भी गंदी गालियां और भी निर्लज्ज होने के धब्बे को अपने दामन पर सजाती रहेंगी, मर्दों के लिए औरतें सिर्फ संतान देने भर की होती है।

समय बीता  उस पागल लड़की ने एक बच्चे को जन्म दिया परंतु जन्म देते वक्त उस लड़की की  मृत्यु  हो गयी पूरो ने ही उस बच्चे का जिम्मा अपने सर लिया और उसे अपनी संतान से ज्यादा ममता दी।

कुछ समय बाद भारत पाकिस्तान विभाजन हुआ पूरो के गांव में एक काफिला रात्रि विश्राम के लिए रुका जब पूरो को यह पता चला कि काफिले पास के गांव का है जिसमें रामचंद भी शामिल है वह यह सुनते ही सामान बेचने के लिए उस काफिले में शामिल हो गई।

जब उसे रामचंद दिखा तो वह उसे पहचान गया और उन दोनों की बातें उसने पूरो को बताया कि तुम्हारे  अपहरण के बाद मेरी शादी तुम्हारी छोटी बहन के साथ हो गई है और मेरी बहन की शादी तुम्हारे भाई के साथ हो गई परंतु शादी के दौरान ही मेरी बहन का अपहरण हो गया। यह सुनते ही पूरो ने रामचंद को वचन दिया कि मैं तुम्हारी बहन और अपनी भाभी को अपहरण से मुक्त करा दूंगी।

उसके पश्चात पूरो और राशिद ने हर प्रयत्न किए आखिरकार उन्हें रामचंद की बहन और पूरो को अपनी भाभी मिल ही गई। पूरो ने  रामचंद को पत्र लिखा कि ' हमें तुम्हारी बहन मिल गई है और वह हमारे साथ हिफाजत से है तुम्हारा जब मन हो भाभी को अपने साथ ले जाना'। पत्र का जवाब भी जल्दी ही  पूरो को प्राप्त हुआ और रामचंद पूरो के भाई के साथ  बॉर्डर पर पूरो को मिलने आगये।

जब पूरो के भाई  ने पूरो को देखा तो उसका सबसे पहले शुक्रिया अदा किया और उसे अपने साथ चलने को कहा। 

पूरो ने  एक ही जवाब दिया कि अब वह पूरो  नहीं अब वह हमीदा है और उसका परिवार बॉर्डर के पार नहीं बल्कि राशिद के यहां है इतना कहकर वह राशिद और अपने बेटे के पास चली गई।

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