Subhdra Kumari Chauhan poems
पुस्तक समीक्षा

जलियांवाला बाग हत्याकांड पर सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा एक कविता

सुभद्रा कुमारी चौहान ने बसंत से आह्वान करते हुए कहा है कि यदि बसंत जलियांवाला बाग में आए तो वह किस प्रकार से आए? क्योंकि जलियांवाला बाग शोक का प्रतीक है और बसंत (नई उमंग नए उत्साह) खुशियों का। कवियत्री को जलियांवाला बाग में बसंत का आना अच्छा नहीं लगता लेकिन, बसंत को आने से कोई नहीं रोक सकता इसलिए कवियत्री बसंत को संबोधित करते हुए यह प्रार्थना कर रही है कि हे बसंत...! जब कभी भी तुम जलियांवाला बाग में आओ तो बिल्कुल शांति से आना, क्योंकि यहां इतना कुछ घटित हुआ है जिससे जिसमें छोटे-छोटे पुरुष, स्त्रियां, बच्चे, मौत की गोद में सो गए थे। आपका इस बाग में स्वागत है लेकिन आप जब भी इस बाग में आओ तो इस बात का ध्यान रखना कि इस स्थान पर क्या हुआ था।


यहां कोकिला नहीं, काक है शोर मचाते।

 काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।।

 कलियां भी अधखिली, मिली है कंटक कुल से।

 वे पौधे, वे पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।।


भावार्थ 

(प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवियत्री कहना चाहती है कि इस बाग में कोयल की नहीं कौवों की आवाज सुनाई दे रही है उड़ते हुए काले- काले कीड़ों से भंवरों के होने का भ्रम उत्पन्न हो रहा है। पेड़-पौधों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह सब मुरझाए हुए हैं और पेड़ों से टूटकर कलियां नीचे गिरी हुई है।)


परिमल-हीन पराग दाग- सा बना पड़ा है।

 हा ! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।।

 आओ, प्रिय ऋतुराज ! किंतु धीरे से आना।

 यह है शोक स्थान, यहां पर शोर मत मचाना।।


भावार्थ

(बसंत को संबोधित करते हुए कवियत्री कहना चाहती है कि हे बसंत...! यह पूरा बाग निर्दोष लोगों के खून से सना हुआ है, जिससे फूलों के पराग सुगंधहीन हो गये हैं इसलिए हे बसंत...! जब भी तुम यहां पर शांतिपूर्वक आना क्योंकि यहां दुख और वेदना फैली हुई है)।


वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना।

 दुख की आहें संग उड़ाकर, मत ले जाना।।

 कोकिल गावे, किंतु राग रोने का गावे।

 भ्रमर करें गुंजार, कष्ट की कथा सुनावे।।


भावार्थ

(प्रस्तुत पद्यांश में कवियत्री कहना चाहती हैं कि वायु को भी यदि चलना है तो वह धीरे-धीरे चले, वह दुख भरी आंहों को अपने साथ उड़ा कर ना ले जाए। कोयल गाए तो वह भी रोने का ही गीत गाए और भ्रमर के गुंजन में भी जलियांवाला बाग का ही दुख हो।)


लाना संग में पुष्प, न हो वे अधिक सजीले।

हो सुगंध की मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले।।

किंतु न तुम उपहार भाव आकर दरसाना।

 स्मृति में पूजा हेतु यहां थोड़े बिखराना।।


भावार्थ

(बसंत को संबोधित करते हुए कवियत्री कहती है कि तुम अपने साथ कुछ हल्के रंग के पुष्पों को लेकर आना जिनमें, अधिक खुशबू ना हो और वे आंसू रूपी ओंस के कारण नम हो। अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि हे बसंत...! तुम जब भी आओ अपने फूलों को उपहार के रूप में ना लाना बल्कि उन्हें शहीदों को स्मृति स्वरूप अर्पण करने हेतु लाना।)


कोमल बालक मरे यहां, गोली खा-खा कर।

 कलियां उनके लिए गिराना, थोड़ी लाकर।।

 आशाओं से भरे  हृदय भी छिन्न हुए हैं।

 अपने प्रिय, परिवार देश से भिन्न हुए हैं।।


भावार्थ

(यहां पर कवियत्री कह रही हैं कि छोटे-छोटे कोमल बालक भी अंग्रेजों की गोलियां खा- खाकर मरे हैं। इसलिए उनकी याद में बच्चों रुपी छोटी-छोटी कलियां यहां पर गिरा देना। यहां पर जो लोग आए थे उनके मन में देश को आजाद कराने की कुछ आशाएं थी लेकिन अब वे शहीद हो गए हैं अपने देश और परिवार से दूर हो चुके हैं इसलिए कुछ कलियां तुम उनकी याद में यहां पर चढ़ा देना।)


कुछ कलियां अधखिली, यहां इसलिए चढ़ाना।

 करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना।।

 तड़प- तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।

 शुष्क-पुष्प कुछ, यहां गिरा देना तुम जाकर।।


भावार्थ

(बसंत ऋतु को सम्बोधित करते हुए कवियत्री कहती हैं कि हे बसंत तुम उन सभी शहीदों और परिवार के लोगों के लिए कुछ कलियां यहां पर लाकर चढ़ा देना जो अपने परिवार से दूर हो गए हैं। कुछ सूखे फूल तुम उन वृद्ध लोगों की याद में यहां चढ़ाना जिन्होंने यहां अपने प्राणों का बलिदान दिया है।)


यह सब करना, किंतु,

 बहुत धीरे से जाना।।

 यह है शोक स्थान,

 यहां मत शोर मचाना।।


भावार्थ 

(कवियत्री कहती है कि हे बसंत तुम वह सब करना जो प्रकृति ने उसे करने के लिए कहा है लेकिन, जब वह जलियांवाला बाग में आए तो वह धीरे से आए क्योंकि यह एक शोक स्थान है।) 


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