Book Written by Anuj Garg
पुस्तक समीक्षा

लोकतंत्र की आलोचना करती हुई खुली किताब | Book Written by Anuj Garg

किसी भी समाज में सामाजिक नियमों का एक दायरा होता है और समाज इन नियमों से ही चलता है। बशर्ते यह नियम जनहितकारी होने चाहिए अर्थात् जनता के हित में होने चाहिए और इन नियमों का पालन सुनिश्चित होना चाहिए। इन नियमों को सुनिश्चित करने के लिए सरकार या समाज को एक शासन की आवश्यकता होती है, परंतु जब यह शासन प्रशासन ही ठीक से काम ना करें तो किसी देश की क्या हालत होती है यह आप या हम में से कोई नहीं सोच सकता। वह देश विफलता की ओर अग्रसर होता जाता है। इसीलिए एक ऐसी शासन व्यवस्था जिससे जनता का हित हो, तानाशाही, धार्मिक स्वतंत्रता या जनप्रतिनिधियों जैसी शासन प्रणालियों से अलग हो, उसे कहते है लोकतंत्र। इस लोकतंत्र में किसी बड़े आदमी से लेकर आम आदमी तक सभी की एक समान भागीदारी होती है। Book Written by Anuj Garg


आज का लोकतंत्र भ्रष्टाचार के जाल में पूरी तरह से लिप्त है। आप में से सभी लोग यह जानते होंगे कि कोई भी छोटे से छोटा काम करवाना हो या बड़े से बड़ा काम हो उसमें हमारा सामना व्यवस्था के बड़े जमींदारों से होता है। एक ओर जहां जनता लोकतंत्र में यह सार्थकता देखती है कि उनके साथ भेदभाव रहित व्यवहार होगा और सारे कार्य बिना किसी रूकावट के पूरे हो जाएंगे वहां पर उन्हें क्यों और कैसे जैसे सवालों से गुजरना पड़ता है। लेकिन इस मुद्दे पर हर कोई चुप बैठ जाता है। कुछ खुद की मजबूरी और कुछ इस व्यवस्था के जाल में फंसने के डर से व्यक्ति को चुप रहना पड़ता है और सब कुछ सुन कर भी उसे अनसुना करना पड़ता है अर्थात् भ्रष्टाचार के बिना कुछ भी संभव नहीं है। 




सरकारी हो या गैर सरकारी सभी कार्यों के लिए भ्रष्टाचार देश में पूरी तरह से व्याप्त हो चुका है। आम आदमी सब कुछ देखकर भी अंधा बन जाता है क्योंकि उसे फिक्र है अपने सम्मान की और डर है खुद की स्वतंत्रता की। चाहे मकान हो या दुकान नौकरी पेशा इंसान हो या  जमीन जायदाद से जुड़ा कोई भी मामला हो, कचहरी जाना हो अस्पताल जाना हो या स्कूल, हर जगह अनेक काम होते हैं, जो बिना भ्रष्टाचार के पूरे नहीं होते। परंतु वहां कोई भी व्यक्ति चाहकर भी अपने हक और अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा सकता क्योंकि कोई भी लड़ाई झगड़ा पसंद नहीं करता और किसी दूसरे के झगड़े के मामले में भी फंसना नहीं चाहता। आम व्यक्ति सोचता है कि जब कुछ ले देकर कोई भी कार्य पूरा हो रहा है तो फिर हमें बेकार की जंजीरों में बंधने की क्या जरूरत है, ले देकर यह काम पूरा करवा ही लेते हैं। लेकिन वह भूल जाता है कि इस तरह से लेने देने के बाद कार्य करने से उसका काम तो पूरा हो जाता है परंतु वह इन भूखे भिखारियों को शह दे देता है और अब वह एक इंसान को लूटने के बाद अपना दूसरा शिकार ढूंढते रहते हैं।  इस तरह से आम आदमी पिस्ता चला जाता है और उनके इस कर्म के कारण किसी की पूरी जिंदगी की कमाई तक लुट जाती है।


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लेखक अनुज गर्ग कहते हैं कि यह किताब लिखी गई क्योंकि भ्रष्टाचार आज दुनिया इस देश को खोखला करता जा रहा है। भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर है, इसीलिए 2012 में इंडिया अगेंस्ट करप्शन एक्ट आया। इसने कुछ हद तक भ्रष्टाचार पर रोक तो लगाई परंतु पूरी तरह से इसे समाप्त नहीं कर सका।अपने भ्रष्टाचार से संबंधित सभी अनुभवों को तथा वास्तविक संस्मरणों को धागे में पिरो कर लेखक द्वारा यह किताब लिखी गई है। इसमें सभी घटनाएं वास्तविक हैं, इसीलिए इस किताब का नाम खुली किताब रखा गया है। 


कोई चपरासी हो या व्यापारी कोई मंत्री हो या जुडिशरी में काम करने वाला कोई भी व्यक्ति हर कोई भ्रष्टाचार से ग्रसित है। इसी भ्रष्टाचार के मामले में लोकतंत्र की खुली आलोचना करती और उसकी पोल खोलती हुई किताब है-: खुली किताब। लोकतंत्र में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करने एवं भ्रष्टाचार को फैलने से रोकने के लिए इस किताब को सभी का पढ़ना बहुत आवश्यक है।


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