Nehru Mithak Aur Satya
पुस्तक समीक्षा

नेहरू से जुड़े सत्य को उजागर करती अहम पुस्तक | Nehru Mithak Aur Satya

हाल के कुछ दिनों में नेहरू के नाम पर कई भ्रम फैलाए जा रहे हैं। नई- नई झूठी कहानियां रची जा रही हैं और सूचनाएं गठित करके इन्हें आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है। यह कार्य राष्ट्रवादी भावना से पूर्ण लोगों का है। जो नेहरू और गांधी की छवि को बदलने की कोशिश में लगे हैं। वह इन नेताओं के खिलाफ दुष्प्रचार करके इन्हें बुरा साबित करने पर तुले हुए हैं और देश के इतिहास की जानकारी न रखने वाले लोग इस प्रकार के सूचनाओं से प्रभावित होकर उनकी नकारात्मक सोच में उनका साथ देने लगते हैं तथा इसी तरह के भ्रमों के जाल में फंसते चले जाते हैं।  इसी तरह के भ्रम भरे इस वातावरण में देश के लिए नेहरू की भूमिका को बताती एक किताब 'नेहरू मिथक और सत्य' है जिसे पीयूष बबेले ने लिखा है। 

Nehru Mithak Aur Satya किताब में नेहरू के द्वारा दिये गये भाषणों, स्वतंत्रता आंदोलनों के दौरान दूसरे नेताओं के साथ उनके जो भी संवाद हुए, उस वक़्त के दस्तावेज और चिट्ठियों की वास्तविकता को बताया गया है। यह किताब किसी भी तरह से लोगों द्वारा फैलाए गए झूठ और मिथकों को दूर नहीं करती बल्कि हर तरह के उस समय के सच से सबको परिचित कराती है। कई वर्षों से जिस सच्चाई पर धूल की कई पर्तें चढती जा रहीं थीं उन्हें हटाने का एक प्रयास लेखक द्वारा इस किताब के माध्यम से किया गया है।

आज जिस आजाद भारत को हम देख रहे हैं, जिसमें खुलकर साँस ले रहे हैं, यह सिर्फ इस कारण सम्भव हो पाया है क्योंकि एक ऐसा दूरदर्शी नेता जो भारत को मजबूत बनाने की चाहत में लगातर प्रयत्नशील था उस समय मौजूद था। उनकी नीतियों को चाहे वह अयोध्या से संबंधित हो या साम्प्रदायिकता को लेकर इस किताब मे बताया गया है। कश्मीर में धारा 370 को लेकर भी इसमे कई ऐसे खुलासे किए गए हैं। जो शायद सभी को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दे। इस किताब में भारत के सयुंक्त राष्ट्र में जाने के विषय पर दी गयी जानकारी भी पाठक को चौंका देती है।

यह किताब इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि सांप्रदायिक रूप से भारत के बंटवारे में सबसे बड़ी चुनौती क्या थी,  बहुसंख्यक वाद के दबावों के होने के बाद भी अल्पसंख्यकों को बिल्कुल बराबरी की जगह कैसे दी जाए, भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान तथा खादी की जरूरत इन सभी बहसों के बावजूद भी एक मजबूत राष्ट्र बनकर तैयार हुआ तथा नेहरू ने और कई प्रसंगों पर बारीकी से विचार किया।

लेकिन यह किताब नेहरू के व्यक्तित्व से भी परिचित करवाती है, जिसमें नेहरू एक ऐसे नेता हैं जो जेल में रहते हुए भी देश और दुनिया के विभिन्न प्रश्नों पर आधुनिक तरीकों को शामिल करते हुए विचार करते रहे हैं। दूसरी तरफ नेहरू वे नेता हैं जो आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने तथा इसके बाद वे यह जानते थे कि उन्हें सभी लोगों की जवाबदेही लेनी होगी तथा भारत को अर्थवान बनाना होगा जो कि स्वतंत्रता, समानता और समृद्धि से ही मुमकिन है। भारत को एक अखंडता पूर्ण तथा एकता से गठित राज्य बनाना नेहरू के ही विचारों में शामिल था। जिसमें नेहरू द्वारा कई तरह की संस्थाएं खड़ी की गई थी।


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इस किताब में नेहरू और गांधी के अलग-अलग विचारों को भी बताया गया है। इस बात को साफ किया गया है कि नेहरू और गांधी में भले ही विचारात्मक मतभेद थे परंतु यह अलगाव कभी भी उन दोनों की तथा देश की अस्मिता के बीच नहीं आया। वे दोनों इतने कुशल नेता थे कि उन्होंने इस मतभेद के बारे में बात की और इस मसले को सरलता से निपटाया।

इस तरह से देश के प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू, सरदार भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभ भाई पटेल के रिश्तों की सच्चाई को भी यह किताब बखूबी बताती है। वैसे तो दुनियां में कई सारी किताबें नेहरू पर और इस तरह के मसलों पर लिखी जा चुकी हैं परंतु वे सभी अंग्रेजी में हैं और हिंदी में शायद यह पहली किताब है जो नेहरू को इस तरह से पाठकों के सामने रखती है। इस पुस्तक में कई भाषणों के अंश दिए गए हैं। जो छोटे किए जा सकते थे। इसी तरह की एडिटिंग में कमी के बावजूद भी यह किताब काफी शोध और खोजबीन करके लिखी गई है। जो इतिहास और नेहरू के बारे में सच्चाई बयां करती है।


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