A Special Training of Naga Sadhus
कुम्भ 2021

जानिये क्या है नागा साधुओं के मुख्य कार्य और कैसे दी जाती है ट्रेनिंग

नागा साधु  कुंभ का विशेष आकर्षण कहलाते हैं। शिव और अग्नि के अखंड भक्त कहलाने वाले ये साधु निर्वस्त्र और युद्ध कला में पारंगत होते हैं। आम जनजीवन से दूर ये साधु कठोर अनुशासन और क्रोध के लिए भी जाने जाते हैं।


नागा साधु बनने के लिए कठिन अनुशासन और ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। सिंहस्थ में सन्यासी संप्रदाय से जुड़े नागा साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना देना नहीं होता। कहा जाता है कि गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना कठिन इन नागा साधुओं का जीवन होता है।जटिल प्रशिक्षण की अलग सीढ़ियां को चढ़ते नागा साधुओं की अपनी एक विशेष रहस्यमई दुनिया होती है। कुंभ में आकर्षण का विशेष केंद्र माना जाने वाले नागा साधुओं की झलक पाने के लिए प्रत्येक आमजन लालायित रहते हैं। नागा सन्यासी बनने से पूर्व इन साधुओं को एक लंबी और कठिन प्रक्रिया से गुजरना होता है। क्या है नागा साधु बनने की प्रक्रिया आइए जानते हैं-


नागाओं की दिनचर्या- "ओम नमो नारायण" अभिवादन मंत्र का जाप करने वाले नागा प्रातः 4:00 बिस्तर का त्याग करते हैं। स्नान कर "श्रृंगार करना" इनका मुख्य कार्य होता है इसके बाद हवन, ध्यान, वज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया, व नौली क्रिया कर पूरे दिन में नागा एक बार भोजन करते हैं।


करना होता है ब्रह्मचर्य का पालन


सर्वप्रथम नागा साधुओं को ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा प्रदान की जाती है। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए नागा साधु को नागा अखाड़े में शामिल किया जाता है। 3 साल तक नागा साधुओं को अपने गुरु की सेवा करनी होती है जहां पर उसे धर्म, दर्शन और कर्मकांड को समझना होता है।


महापुरुष दीक्षा 


ब्रह्मचर्य की परीक्षा में सफल होने पर नागा साधुओं को महापुरुष बनने की शिक्षा दी जाती है जिसमें उसे सन्यासी बनाया जाता है सन्यासी बनने के लिए नागा साधुओं का सबसे पहले मुंडन किया जाता है और 108 डुबकी लगाई जाती हैं। अखाड़े में मौजूद 5 सन्यासियों को उसे अपना गुरु बनाना पड़ता है।


यज्ञोपवीत


जनेऊ संस्कार कर नागा साधुओं को अवधूत बनाया जाता है। शपथ ग्रहण कर उसका पिंडदान किया जाता है और पूरी रात ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप कराया जाता है। जाप करते करते जब भोर का समय होता है तो नागा साधुओं को अखाड़े में ले जाकर विजया हवन करवा कर फिर से गंगा में 108 डुबकियों का स्नान करवाया जाता है और इसके बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी का त्याग करवाया जाता है इस संपूर्ण प्रक्रिया को नागा विजवान संस्कार का नाम देते हैं।


पिंड दान (विजवान)


जनेऊ संस्कार के बाद नागा साधुओं को सन्यासी जीवन की शपथ दिलाई जाती है। गंगा के किनारे निर्जन स्थान पर ले जाकर नागा साधुओं का पिंडदान करवाया जाता है इनको 17 प्रकर के पिंडदान करना पड़ता है जिसमें 16 पिंडदान उनके परिजनों का तथा 17 पिंडदान स्वयं का करते हैं। कहा जाता है कि अपना पिंडदान स्वयं करके वह अपने को मृत घोषित करते हैं और इस प्रकार उनका पूर्वजन्म समाप्त मान लिया जाता है। पिंडदान करके इन नागा साधुओं का जनेऊ, गोत्र समेत पूर्व जन्म की सारी निशानियां मिटा दी जाती है। 


दिगंबर


दिगंबर नागा साधु आजीवन एक लंगोट धारण करना पड़ता है।


श्रीदिगंबर


श्री दिगंबर नागा की "इंद्री" तोड़ दी जाती है और ये निर्वस्त्र रहते हैं।


नागा परंपरा के अनुसार- जब नागा साधु अपनी इस जटिल प्रशिक्षण प्रक्रिया को पूर्ण कर लेते हैं तो इन्हें फिर से एक बार सामाजिक दुनिया में लौट जाने की सलाह दी जाती है लेकिन वह सन्यासी जो अडिग ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए इस अखाड़े का हिस्सा बनना चाहता है तो तब इसे कुंभ में नागा सन्यासी बनाने के लिए ले जाया जाता है। शरीर पर मुर्दे की राख या हवन की राख को शुद्ध करके लगाने वाले यह नागा साधु गले तथा हाथों में रुद्राक्ष धारण करते हैं। त्रिशूल और कमंडल हाथ में लिए यह नागा साधु अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में निवास करते हैं। पैदल भ्रमण करते हैं और तप के लिए हिमालय की ऊंची पहाडियों में जाते हैं जहां पर यह झोपड़ी बनाकर रहते हैं और निर्वस्त्र तप करते हैं। भ्रमण करते समय नागा साधु भिक्षा मांग कर भोजन करते हैं इन्हें केवल 7 घरों में भिक्षा मांगने की इजाजत है। यदि सातों  घर में कोई भी भिक्षा ना मिले तो इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है।


नागाओं के कार्य 


तपस्या और योग क्रिया करना, प्रार्थना, आश्रम का कार्य करना और गुरु की सेवा करना नागाओं के मुख्य कार्य है।


नागाओं के पद


वरीयता के आधार पर नागा साधुओं के अलग-अलग पद होते हैं जिनमें कोतवाली, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सबसे प्रमुख पद "सचिव" का होता है।


नागाओं की उपाधियां


अलग-अलग स्थानों पर नागा साधुओं को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इलाहाबाद कुंभ में नागा साधुओं को "नागा" उज्जैन में "खूनी नागा" हरिद्वार में "बर्फानी नागा" और नासिक में "खिचड़ीया नागा" के नाम से जाना जाता है।

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