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कुम्भ 2021

क्यों ख़ास है ब्रह्मचारियों का पंचाग्नि अखाडा और क्या हैं इसके नियम

अखाड़ों को साधुओं का "मठ' कहा जाता है। प्राचीन काल में सनातन धर्म में चार अखाड़े विद्यमान थे लेकिन बाद में साधुओं के वैचारिक मतभेद के कारण इन्होंने अपने अपने संगठन बनाना प्रारंभ किया इस प्रकार इन अखाड़ों की संख्या बढ़कर 13 हो गई। किन्नर समुदाय के निरंतर संघर्ष के परिणाम स्वरूप एक नया अखाड़ा अस्तित्व में आया जिसका नाम था "किन्नर अखाड़ा"। वर्तमान समय में सिंहस्थ कुंभ में शामिल होने वाले इन अखाड़ों की संख्या 14 हो गई है इन अखाड़ों की अपनी विचारधारा अपने अपने इष्ट देव तथा अपना अलग शाही वैभव होता है। प्राचीन परंपरा के अनुसार इन अखाड़ों में वैष्णव, शैव तथा उदासीन पंथ के सन्यासी मौजूद रहते थे।


पंचाग्नि अखाड़े की स्थापना

वर्ष 1136 में विक्रम संवत 1992 आषाढ़ शुक्ल एकादशी को स्थापित श्री पंचाग्नि अखाड़ों को "दशानम" अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है। श्री पंचाग्नि अखाड़े की इष्ट देवी "गायत्री" को माना जाता है। इस अखाड़े का मुख्य केंद्र काशी में है और इसका मुख्यालय वाराणसी में स्थापित है। अलग-अलग स्थानों हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन, नासिक, अहमदाबा तथा जूनागढ़ में इसकी शाखाएं भी है। कहा जाता है कि इस अखाड़े का संचालन 28 श्री महंत तथा 16 सदस्यों की टीम करती है। वर्तमान में इस अखाड़े के सभापति श्री "महंत गोविंद आनंद ब्रह्मचारी" हैं।


श्री पंचाग्नि अखाड़े में 100 ब्रह्मचारी होते हैं जो 4 रूपों चतुस्नाम ब्रह्मचारी आनंद, चेतन, प्रकाश एवं स्वरूप में बंटकर काम करते हैं। अग्नि अखाड़े में सम्मिलित होने के लिए सन्यासियों को कठिन संस्कारों और प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है जिसमें सर्वप्रथम पंच द्रव्य के माध्यम से इनका स्नान तथा पंचभूत संस्कार किया जाता है। इसके बाद उपनयन, लंगोटी, एक रुद्राक्ष और एक केश काटना संस्कार किया जाता है। अग्नि अखाड़े के सन्यासियों को अखाड़े में शामिल होने के लिए एक केश काटकर उसे ब्रह्म विद्या से गांठ देकर गंगा में विसर्जित किया जाता है तत्पश्चात 5 गुरु मिलकर एक पंचमुखी रुद्राक्ष या 11 मुखी रुद्राक्ष के दाने पर इसे लगाते हैं।


पंचाग्नि अखाड़े के चार मठ

चतुनार्मना ब्रह्मचारी के नाम से मशहूर पंचाग्नि अखाड़े में चार मठ होते हैं और इन चार मठों में चार मठाधीश होते हैं इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी साधु व महामंडलेश्वर शामिल है। जिनमें ज्योतिर मठ में "आनंद" नामक ब्रह्मचारी, द्वारिका में "स्वरूप" नामक ब्रह्मचारी, श्रृंगेरी मठ में "चैतन्य" तथा गोवर्धन मठ में "प्रकाश" नाम का ब्रह्मचारी मठाधीश है।


पंचाग्नि अखाड़े का शाही स्नान

शंकराचार्य द्वारा निर्मित श्री पंचाग्नि अखाड़े का शाही स्नान श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के साथ होता है। भगवान शंकर का तांडव, करतब तथा विभिन्न योग क्रियाएं दिखाते हुए अपनी धर्म ध्वजा के साथ प्रत्येक अखाड़ा हरिद्वार की पावन नगरी में प्रवेश करता है। जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान करने वाले अग्नि अखाड़े में शैव परंपरा प्रचलित होती है। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मणों को दीक्षा प्रदान की जाती है जबकि अन्य शैव अखाड़ों में जातिगत भेदभाव देखने को नहीं मिलता यहां दीक्षा प्राप्त करने वाला सन्यासी "ब्रह्मचारी" कहलाता है।


वर्तमान समय में देश की सनातन परंपरा और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रसिद्ध अग्नि अखाड़ा विभिन्न स्थानों में स्कूल तथा कॉलेजों का निर्माण भी कर रहा है इस अखाड़े द्वारा राजस्थान तथा नेपाल के कई गांवों को भी गोद लिया गया है। शिक्षा का प्रचार- प्रसार और शिक्षा देने के लिए इस अखाड़े ने एक दर्जन स्कूल और कॉलेज भी खोले हैं।

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