aadmi ka zehar by Shrilal Shukla
पुस्तक समीक्षा

एक रहस्यमयी अपराध को बयां करता उपन्यास: आदमी का जहर

श्रीलाल शुक्ल द्वारा लिखा गया यह उपन्यास 'आदमी का जहर' नाम शीर्षक से 1972 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास एक जासूसी उपन्यास है, जिसमें कमियों के साथ-साथ रोचकता भी है। शुरुआत बड़े ही रोमांच के साथ होते हुए आगे चलकर पाठकों की उत्सुकता बढ़ाती जाती है। जलन और ईर्ष्या के कारण एक पति हत्या जैसी भयावह घटना को अंजाम देने की सोचता है और वह ऐसा करने के लिए गोली चला भी लेता है। गोली का शिकार होकर आदमी मर जाता है, परंतु उसके मरने का कारण जहर निकलता है।

 अब कथा एक अन्य रोचकता भरे माहौल में प्रवेश कर जाती है, जिसमें पाठक यह सोचने को मजबूर हो जाता है कि उस व्यक्ति को जहर देने वाला कौन था। जैसे-जैसे यह कथा आगे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे सभी किरदारों के राज़ से पर्दाफाश होता है। कई संदिग्ध लोगों को शक के कटघरे में खड़ा किया जाता है। 

उपन्यास का नायक अपने दोस्त के साथ मिलकर अंत में असली मुजरिम को पकड़ता है तथा इस तरह से यह केस पूरा होता है। इस कथा में उपन्यासकार पाठक को पूरी कथा के दौरान बांधे रखने के साथ-साथ उसकी उत्सुकता को बढ़ाए रखता है। यह कहानी यथार्थ के निकट प्रतीत होती है और इसके किरदारों के राज खुलने के साथ-साथ, यहां आस-पास ही घटित किसी कहानी की तरह जान पड़ती है। इसी वजह से इसे एक रोचक घटना क्रम की तरह देखा जा सकता है।

इस उपन्यास के लेखक की बात की जाए तो उन्होंने हिंदी में यह एक ऐसा प्रतिष्ठित उपन्यास लिखा है, जिसमें पारंपरिक जासूसी कथा साहित्य की विशेषताएं मिलती हैं। यह उनकी हमेशा से ही एक बड़ी खूबी रही है। इसमें बिल्कुल भी संदेह नहीं है कि यह उपन्यास बस मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि पाठक को कुछ सोचने पर भी जरूर मजबूर कर देगा।


क्या है "आदमी का ज़हर" उपन्यास की कहानी


हरिश्चंद्र और रूबी के विवाह को 7 साल हो चुके थे। हरिश्चंद्र एक इलेक्ट्रॉनिक सामान के शोरूम का मालिक था। रूबी बहुत सुंदर दिखने वाली महिला थी। हरिश्चंद्र यह जानता था कि लोग उसकी किस्मत से जलते हैं क्योंकि उसकी पत्नी रूबी जैसी एक खूबसूरत महिला है, परंतु इसकी सच्चाई तो सिर्फ वह खुद ही जानता था।

 लोगों की नजरों में भले ही रूबी और हरिश्चंद्र आदर्श पति पत्नी थे, लेकिन ऐसा हरीश को बिल्कुल नहीं लगता था। उसे अपनी बीवी पर यह शक था कि उसका किसी और के साथ ताल्लुक है। फिर एक दिन जब उसने अपनी पत्नी को एक होटल के कमरे में अजीत सिंह नाम के शख्स के साथ देखा, तो वह अपने आपे से बाहर हो गया। उसने भावनाओं के वशीभूत होकर अजीत सिंह पर गोली चला दी और उसका कत्ल कर दिया। अजीत सिंह एक पत्रकार था, जो कि जनक्रांति नामक साप्ताहिक अखबार को निकालता था। 


इसे भी पढ़ें : सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गयी एक सुन्दर कविता


अजीत का कत्ल करने के बाद हरीश उसके कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर दिया गया। यहां तक यह कहानी बहुत ही सीधी और सरल सी लगती है तथा इस घटना में किसी भी तरह का कोई पेंच जुड़ता हुआ नहीं दिखाई देता। आश्चर्य तब होता है, जब डॉक्टर की रिपोर्ट आती है। उसमें यह बताया जाता है, कि गोली से तो अजीत सिंह को बचा लिया गया था परंतु उसकी हत्या का कारण कुछ और ही है। उसकी हत्या का मुख्य कारण जहर है, अर्थात् किसी ने जहर देकर उसे मारा है।



 अब पुलिस यह मानती है कि अजीत सिंह को मारने का कार्य रूबी ने किया है, जबकि हरिश्चंद्र के इस मामले में अपने मत हैं। वह मानता है कि रूबी भले ही जैसी भी महिला हो, परंतु वह इतना बड़ा अपराध बिल्कुल नहीं कर सकती। अब पाठकों के मन में कई सवाल उत्पन्न होते हैं।

जैसे पुलिस इस नतीजे पर क्यों पहुंची?

 अजीत सिंह का कत्ल रूबी ने किया है या नहीं?

 यदि रूबी द्वारा यह कत्ल नहीं किया गया है, तो फिर अजीत सिंह को जहर देने वाला इंसान कौन था और उसने उसे क्यों मारा?

 रूबी को इस केस में स्वयं को निर्दोष साबित करना था और इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने थे। अब उसे पता चलता है कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद पूरे लखनऊ में सिर्फ एक ही व्यक्ति है, जो उसकी अच्छे से मदद कर सकता है और उस व्यक्ति का नाम था, पत्रकार उमाकांत। उमाकांत पेशे से पत्रकार है तथा वह जासूसी वाले कार्यों को करने में खासी दिलचस्पी रखता है। रूबी ने उमाकांत को अपनी सहायता के लिए बुला लिया। उमाकांत ने अपने दोस्त बादशाह की भी मदद ली। उसके अलावा इस केस की छानबीन सीआईडी इंस्पेक्टर सिद्धकी भी एक ओर से करता है।

 अब आगे क्या हुआ? उमाकांत अंत में अजीत सिंह की मौत का रहस्य जान पाया या नहीं? 

अजीत की जान किसने ली और क्यों ली? ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर के लिए आपको यह उपन्यास पढ़ना पड़ेगा।

यह उपन्यास भले ही एक औसत उपन्यास है, परंतु इसकी पटकथा बहुत ही रोमांच से भरी और उत्सुकता पैदा करने वाली है। इस उपन्यास का एक उपलब्धि है कि इसमें अंत तक भी कातिल की भनक तक नहीं लगती। फिर भी एक कमी इसमें नजर आती है। कातिल के खिलाफ मिलने वाले सबूत। हत्यारे के खिलाफ जो भी सबूत मिलते हैं, वह इस तरह से हैं जैसे कि लेखक की सुविधा के लिए लिखे गए हों।

 अर्थात् कोई ‌व्यक्ति जब किए गए अपराध में किसी चीज का प्रयोग करता है, तो वह उस चीज को अपने पास कई दिनों तक भला क्यों रखेगा? क्यों नहीं वह उसे खुद से दूर कर देगा। ताकि वह किसी भी तरह से फंस न जाए। यह इसका थोड़ा कमजोर पक्ष है, परंतु इसके अलावा उपन्यास मनोरंजन से भरा हुआ, रोचकता से परिपूर्ण और रहस्यमई अपराध की कथा को बयां करता है। 

यदि आप एक रोचक और जासूसी कथानक पढ़ने के शौकीन हैं तो एक बार इसे अवश्य पढ़ें।

Trending Products (ट्रेंडिंग प्रोडक्ट्स)