History of Har Ki Pauri - Haridwar
कुम्भ 2021

क्या आप जानते हैं की हरिद्वार में हर की पैड़ी का निर्माण किसने किया था

मां गंगा का पावन घाट, देवनगरी हरिद्वार में "हर की पैड़ी" के नाम से विख्यात है। मां गंगा का यह पावन तट मायानगरी का हृदय स्थल कहलाता है। जहां पर देश दुनिया से लोग आस्था, श्रद्धा और विश्वास लेकर आते हैं।


सनातन धर्म से संबंधित हर की पैड़ी, हरिद्वार का एक पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। हर की पौड़ी वह स्थान है जहां से गंगा पहाड़ों को छोड़ मैदानों में प्रवेश करती है। कहा जाता है कि इस स्थान पर गंगा नदी में पापों को धो डालने की शक्ति है। हर की पैड़ी का अर्थ है -"हरी" यानी "भगवान नारायण के चरण"। हर की पैड़ी पर स्थित एक पत्थर में श्रीहरि के पद चिन्ह विद्यमान हैं जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि यहां पर साक्षात विष्णु अवतरित हुए थे।


मां गंगा के दाहिने तट पर स्थित हर की पैड़ी 'हरिद्वार' का एक पवित्र स्थान माना जाता है। यहां पर मां गंगा का पवित्र मंदिर विद्यमान है। आए दिन श्रद्धालु यहां पर गंगा स्नान के लिए आते हैं। यहां का पवित्र गंगाजल देश के सभी स्थानों के यात्रियों द्वारा ले जाया जाता है। प्रत्येक 12 वर्ष में जब सूर्य और चंद्र, मेष राशि में और बृहस्पति, कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तो यहां पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालुओं तथा साधु -संतों द्वारा हर की पैड़ी के पवित्र स्थान पर स्नान कर मोक्ष की कामना की जाती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर मरने वाला प्राणी परम पद पाता है और स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति पाकर परलोक में हरिपद की प्राप्ति होती है।


इतिहास


मिथकों के अनुसार हर की पैड़ी का इतिहास वैदिक कालीन माना जाता है कहा जाता है कि इस स्थान पर वैदिक काल में भगवान विष्णु और शिव का प्रकाट्य हुआ था। ऐसा माना जाता है कि राजा श्वेत ने हर की पैडी नामक स्थान पर भगवान ब्रह्मा की तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने हरकी पैड़ी को युग युगांतर तक पवित्र स्थल होने का वर श्वेत को प्रदान किया था।


हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर की पैड़ी वह पवित्र स्थल है जहां पर समुद्र मंथन के बाद अमृत की बूंद गिरी थी। हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी पर स्नान करना हर श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है। कहा जाता है कि यहां स्नान करने से सिद्धि की प्राप्ति होती है।


हर की पैड़ी का निर्माण विक्रमादित्य द्वारा अपने भाई भृतहरि की याद में करवाया गया था कहा जाता है कि यहां पर वे गंगा घाट पर बैठकर ध्यान किया करते थे।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार हर की पैड़ी का इतिहास राजा अकबर के समय का है हर की पैड़ी पर स्थित ब्रह्मकुंड का पवित्र घाट असल में ब्रह्मकुंड न होकर प्राचीन समय में एक छत्रि स्थल था। यहां पर राजा मानसिंह की अस्थियां डाली गई थी। क्षत्री इस स्थान पर समाधि को कहा जाता है। जिस स्थान पर राजा मानसिंह की छत्रि रखी गई है कहा जाता है कि यह स्थान पहले छतरी के आकार का था।


हर की पैड़ी के प्रमुख स्थल


सवाई राजा मान सिंह द्वारा निर्मित छतरी जिसमें उनकी समाधि भी बताई जाती हैं वर्तमान समय में हर की पैड़ी ब्रह्मकुंड के बीचो-बीच स्थित है। राजा मान सिंह द्वारा निर्मित छत्रि ऐतिहासिक भवनों में से एक है। यह इस क्षेत्र का सबसे प्राचीन निर्माण माना जाता है। पुरातत्व विभाग के अनुसार हर की पैड़ी के निकट प्राचीन आवासीय प्रमाण भी मिले हैं जिसमें महात्माओं के साधना स्थल, गुफाएं और छिटपुट मठ मंदिर भृत हरि की गुफा, नाथों का दलिचा आदि प्राचीन स्थल है।


पूजा -अर्चना 


प्रतिदिन सूर्यास्त के समय हरिद्वार की इस पावन नगरी में साधू -सन्यासियों द्वारा मां गंगे की आरती की जाती है। दीपकों की रोशनी से जगमगाता, मंत्रमुग्ध ध्वनियों से गूंजता हुआ गंगा का यह पवित्र घाट अत्यंत अद्भुत दर्शनीय और सुंदर लगता है। देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु इस पावन पर्व का लुफ्त उठा कर स्वयं को धन्य समझते हैं।

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