What is Aghorpanth
कुम्भ 2021

क्या आप जानते है शिव के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप के बारे में

कपालिक संप्रदाय के समकक्ष माने जाने वाले अघोर पंथ शैव संप्रदाय से संबंधित है। भगवान शिव के पांच रूपों में से एक रूप है अघोर रुप। पृथ्वी पर भगवान शंकर का जीवित रूप माना जाता है अघोरियों को।


शमशान में साधना करने वाले और पूरे शरीर को राख (भस्म) से लपेट कर रहने वाले, जिनसे आमजन स्वाभाविक रूप से डरने लग जाता है वह है अघोरी। उज्जैन में यह सिंहस्थ के निकट आते हैं विशाल महा आयोजन में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बनते हैं। इनका स्वरूप वास्तविक तौर पर डरावना होता है लेकिन यह डरावने होते नहीं है। अघोर का अर्थ है अ+घोर यानि जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो अर्थात अघोरी बहुत सरल और सहज, जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं रहता और जो हर चीज में समान भाव रखता है।


उत्पत्ति (Origin)  


हिंदू धर्म का इतिहास बहुत प्राचीन है जिसके प्रमाण व साक्ष्य मिलना काफी मुश्किल रहता है, इसी प्रकार अघोर पंथ की उत्पत्ति काल के विषय में भी कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं परंतु ऐसा माना जाता है कि अघोर पंथ कपालिक संप्रदाय के समकक्ष है। यह भारत के प्राचीन शैव (शिव साधक) से संबंधित माने जाते हैं, धरती पर अघोरियों को भगवान शंकर का जीवित रूप माना जाता है।


क्या है अघोरपंथ (What is Aghorpanth)


साधु की प्रवृत्ति होती है साधना करना, तप करना; जिनका अपना विधान व नियम, कानून होते हैं। साधना की रहस्यमयी शाखा को ही कहा जाता है अघोरपंथ। इस पंथ में खाने-पीने में किसी तरह का कोई परहेज नहीं किया जाता। यह गाय के मांस के अलावा अन्य सभी मांस का सेवन करते हैं, यहां तक कि ऐसा माना जाता है कि यह मानव के मांस का भक्षण भी कर लेते हैं। अघोर पंथी साधक अघोरी कहलाते हैं। अघोर पंथ में शमशान साधना का विशेष महत्व है जिस कारण अघोरी शमशान वास करना ही पसंद करते हैं, शमशान में साधना करना बहुत ही फलदायक माना जाता है।


अघोरपंथ की तीन शाखाएं (Three Branches of Aghorpanth)


अघोर संप्रदाय का अपने आप में विशिष्ट महत्व है, इन्हें तीन शाखाओं में विभाजित किया गया है जो कि प्रसिद्ध है : औघड़, सरभंगी और घुरे। पहली शाखा में कल्लूसिंह व कालूराम हुए, जो किनाराम बाबा के गुरु थे। बहुत से लोग इस पंथ को गुरु गोरखनाथ से भी प्रचलित बताते हैं


क्या करते हैं अघोरी (What does Aghori do)


अघोर संप्रदाय के साधक समान दृष्टि के लिए नर मुंडो की माला पहनते हैं और नर मुंडो को पात्र के तौर पर प्रयोग करते हैं। जहां साधुओं के लिए मांस, मदिरा या शारीरिक संबंध जैसी चीजें निषेध होती हैं तो वहीं अघोरी या तंत्र साधकों द्वारा की जाने वाली आराधना की यह मुख्य शर्तें होती हैं। मांस का सेवन अघोरियों के दृष्टिकोण में साबित करता है कि सीमा शब्द उनके लिए मायने नहीं रखता और सब कुछ एक ही धागे से बंधा हुआ है। बहुत से अघोरी मृत शरीर के साथ संभोग करके अपनी साधना पूरी करते हैं और स्वयं मदिरा का सेवन कर अपने आराध्य को अर्पण भी करते हैं।


अघोरियों का स्वभाव एवं इनके प्रमुख स्थान (Nature of Aghoris)


अघोरियों के स्वभाव के विषय में यह जाता है कि यह बड़े रूखे स्वभाव के होते हैं, इनके भीतर इतनी जनकल्याण की भावना छिपी रहती है कि यदि किसी पर मेहरबान हो जाए तो अपनी सिद्धि का शुभ फल देने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं करते। यहां तक कि यदि कोई इन्हें अच्छा लग जाए तो अपनी तंत्र क्रिया सिखाने को भी राजी हो जाते हैं; परंतु साथ ही यह भी कहा जाता है कि इनका क्रोध प्रचंड होता है जिस कारण इनकी वाणी से सावधान रहना चाहिए।

वाराणसी या काशी को अघोरियों का भारत में सबसे प्रमुख स्थान माना जाता है। भगवान शिव की नगरी होने के कारण यहां विभिन्न अघोरी साधक तपस्या करते हैं, यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी अघोरियों का महत्वपूर्ण स्थान है।

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